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आदिकाल और भक्तिकाल - प्रवृत्तियाँ और प्रमुख कवि तथा विशेषताएं

 आदिकाल

आदिकाल को वीरगाथाकाल के नाम से भी जाना जाता है। हिन्दी साहित्य के इतिहास का यह काल सन् 993 ई. से 1318 ई. (संवत् 1050 से 1375) तक जारी रहा।

आदिकाल की विशेषताएँ

आदिकाल की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं–
1. वीर रस की प्रधानता।
2. युद्धों का सजीव चित्रण।
3. ऐतिहासिक घटनाओं का चित्रण।
4. श्रृंगार एवं अन्य रसों का समावेश।
5. प्राकृत, अपभ्रंश, डिंगल एवं पिंगल भाषा का प्रयोग।
6. आश्रयदाताओं की प्रशंसा एवं उनका गान।

आदिकाल के कवि एवं उनकी रचनाएँ

आदिकाल के प्रमुख कवि एवं उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं–
1. चंदवरदायी– पृथ्वीराज रासो
2. नरपति नाल्ह– वीसलदेव रासो
3. जगनिक– परमाल रासो 'आल्हाखण्ड'
4. शारंगधर– हम्मीर रासो
5. दलपतिविजय– खुमान रासो।

भक्तिकाल

भक्तिकाल हिन्दी साहित्य का स्वर्णिम काल माना जाता है। इसे दो धाराओं में वर्गीकृत किया जा सकता है–
1. सगुण धारा
2. निर्गुण धारा।

भक्तिकाल की विशेषताएँ 

भक्तिकाल की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं–
1. साकार एवं निराकार ब्रह्म की उपासना।
2. रहस्यवादी कविता का प्रारंभ।
3. आध्यात्मिकता और सदाचार प्रेरणा।
4. लोक कल्याण के पथ पर काव्य का चरमोत्कर्ष।
5. समस्त काव्य शैलियों का प्रयोग।
6. प्रकृति सापेक्ष्य वर्णन।

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