तिथि - सावन माह की शुक्ल पक्ष की पंचमी को नाग पंचमी के रूप में मनाया जाता है।
आयोजन - इस दिन नाग देवता या सर्प की पूजा की जाती है और उन्हें दूध से स्नान कराया जाता है। शास्त्रों में नागों को दूध पिलाने को नहीं बल्कि दूध से स्नान कराने को कहा गया है। कहीं-कहीं दूध पिलाने की परम्परा है। इस दिन नवनाग की पूजा की जाती है।
नाग को दूध पिलाने से क्या होता है? ~ पाचन नहीं हो पाने या प्रत्यूर्जता से उनकी मृत्यु हो जाती है।
नागपंचमी के दिन वाराणसी में नाग कुआँ नामक स्थान पर बहुत बड़ा मेला लगता है। किवदंती है कि इस स्थान पर तक्षक गरूड़ जी के भय से बालक रूप में संस्कृत की शिक्षा लेने हेतु आये, परन्तु गूरू पत्नी के सखियों से तक्षक रुपी बालक के बारे में बतलाने के कारण गरूड़ जी को इसकी जानकारी हो गयी और उन्होंने तक्षक पर हमला कर दिया, परन्तु अपने गुरू जी के प्रभाव से गरूड़ जी ने तक्षक नाग को अभय दान कर दिया ।
नागपंचमी के दिन अनेक गांव व कस्बों में कुश्ती का आयोजन होता है, जिसमें आसपास के पहलवान भाग लेते हैं।
सांप को पूजनीय माना जाता है क्योंकि उन्हें शक्ति, उर्जा और मृत्यु का प्रतीक माना जाता है। नाग देवता की पूजा कई धार्मिक और पौराणिक कथाओं से जुड़ी हुई है। हिंदू, बौद्ध और जैन धर्मों में सर्प पूजन की मान्यताएं मौजूद हैं।
भारत में सर्प पूजन -
भारत देश कृषिप्रधान देश है। सांप खेतों की रक्षा करते हैं, इसलिए उन्हें क्षेत्रपाल कहते हैं। जीव-जंतु, चूहे आदि जो फसल को नुकसान करने वाले तत्व हैं, उनका नाश करके सांप हमारे खेतों को हराभरा रखते है। साँप हमें कई मूक संदेश भी देते हैं। साँप के गुण देखने की हमारे पास गुणग्राही और शुभग्राही दृष्टि होनी चाहिए। भगवान दत्तात्रेय की ऐसी शुभ दृष्टि थी, इसलिए ही उन्हें प्रत्येक वस्तु से कुछ न कुछ सीख मिली।
0 Comments