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प्रारम्भिक शिक्षा हेतु पूर्व प्राथमिक विद्यालय की आवश्यकता

प्रारम्भिक शिक्षा हेतु पूर्व प्राथमिक विद्यालय की आवश्यकता - 

लेखक - 
शक्ति पटेल 
(राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक)

प्रारम्भिक शिक्षा प्राप्त करने की उम्र व्यक्ति के व्यक्तित्व विकास का प्रथम सोपान है। इस सोपान में व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, संज्ञानात्मक, बौद्धिक विकास को गति प्राप्त होना शुरू हो जाती है। अतः इस अवस्था में व्यक्ति के विकास पर ध्यान देना एक महत्वपूर्ण और चुनौतीपूर्ण प्रक्रिया है। इस चौनौती को समझते हुए तदनुरूप विकास के लिए यदि आवश्यक कदम नहीं उठाए गए, तो उसका न केवल विकास अवरुद्ध होगा वरन् व्यक्तित्व में विकृति आने की भी प्रबल संभावना रहती है। अतः यह महत्वपूर्ण है कि व्यक्तित्व विकास के विविध आयामों पर ध्यान दिया जाए। हम जानते हैं कि बालक के विकास में परिवार, समाज, मित्र समूह और विद्यालय महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली संस्थाएं हैं। इन सभी संस्थाओं में बालक के विकास का स्तर अलग - अलग होता है। 

जीन पियाजे के द्वारा प्रतिपादित संज्ञानात्मक विकास की अवस्थाओं का विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि यद्यपि परिवार में बालक के सीखने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है, परंतु यह उतनी प्रभावी नहीं हो पाती जितनी कि जीवन को सम्मानपूर्वक जीने और अच्छा नागरिक बनाने के लिए जरूरी होती है। 

इसके विपरीत विद्यालय एक ऐसा स्थल है जहां व्यक्ति को न केवल मार्गदर्शक के रूप में शिक्षक मिलते हैं, बल्कि उसे मित्र समूह भी प्राप्त होता है। यह मित्र समूह जहाँ एक ओर अलग - अलग समाजों का प्रतिनिधित्व करने वाला होता है, वहीं यहाँ लागू किए पाठ्यक्रम और पाठ्यचर्या अनुसार चरणबद्ध रूप से अध्यापन उसकी मस्तिष्क कि शक्तियों को जागृत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। खेल - खेल में बालक गणित और विज्ञान की अवधारणाओं से परिचित होता है। विद्यालय में आने के बाद बालक FLN की विविध अवधारणाओं को आत्मसात करना प्रारम्भ कर देता है। यह सब उसे विद्यालय में प्रदान किए जाने वाली अधिगम सामग्री और शिक्षकों तथा विद्यार्थियों के साथ उसकी अंतर्क्रियाओं के कारण संभव हो पाता है। यदि छात्रों के बीच  मानसिक अन्तर्क्रियाएँ नहीं होतीं तो उनका व्यक्तित्व बहिर्मुखी न होकर अंतर्मुखी ही रह जाने की संभावना बनी रहती है। इसके साथ ही भाषायी कौशल, गणितीय संक्रियाओं के उपयोग एवं सांस्कृतिक रूप से जीवन कौशलों के विकास में अवरोध होने की संभावना रहती है। सह शैक्षिक गतिविधियां जैसे - प्रार्थना सभा, बाल सभा एवं अन्य गतिविधियों के द्वारा बालक में जीवन कौशलों का विकास होना शुरू हो जाता है।

अतः प्रारम्भिक शिक्षा हेतु पूर्व प्राथमिक विद्यालय महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाली संस्था के रूप में है। इनके अंतर्गत उचित अधोसंरचना, पूर्व प्राथमिक स्तरीय पाठ्यक्रम और पाठ्यचर्या आदि का प्रबंधन वर्तमान में उपादेयतापूर्ण है। 

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