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परीक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

प्रश्न - राष्ट्रीय आय के महत्व को समझाईए । 

उत्तर - राष्ट्रीय आय के लाभ या महत्व -

1. आर्थिक प्रगति की जानकारी- किसी देश की आर्थिक प्रगति की जानकारी का अनुमान राष्ट्रीय लेखों से आसानी से लगाया जा सकता है। देश की अर्थव्यवस्था ने एक निश्चित समय में कितनी प्रगति की है तथा किन क्षेत्रों में विकास कार्य अधूरा है इन सब बातों की जानकारी राष्ट्रीय लेखों से मिलती

2. राष्ट्रीय आय के वितरण का ज्ञान- राष्ट्रीय लेखे इस बात की जानकारी प्रदान करने में सहायक होते हैं कि राष्ट्रीय आय का वितरण विभिन्न वर्गों में किस प्रकार हो रहा है अगर वितरण में असमानता या दोष है तो उन्हें दूर करने के प्रयास किए जा सकते हैं।

3. नीति निर्धारण में सहायक- व्यावसायिक दृष्टि से विभिन्न फर्मों को इस बात में रुचि रहती है कि वे जिस उद्योग का अंग है उसका उत्पादन कितना है तथा कुल उत्पादन में इसका कितना भाग है इसी लेखांकन से हमें यह भी जानकारी मिलती है कि राष्ट्रीय आय का व्यय किस प्रकार हो रहा है किन वस्तुओं का बाजार बढ़ रहा है तथा किन वस्तुओं की माँग घट रही है जिससे भावी नीति निर्धारण में मदद मिलती है।

4. श्रम संघों के लिए महत्व- राष्ट्रीय आय का लेखा श्रम संघों के लिए भी महत्वपूर्ण होता है उन्हें इससे इस बात की जानकारी मिलती है कि राष्ट्रीय आय में उनका योगदान कितना है तथा प्रतिफल के रूप में कितना अंश प्राप्त हो रहा है।

5. अन्य संघों के लिए महत्व- राष्ट्रीय आय के अनुमान विभिन्न देशों की आर्थिक प्रगति की तुलना करने में सहायक होते हैं। अन्य अर्थव्यवस्थाओं की प्रगति का मूल्यांकन करके एक अर्थव्यवस्था अपने विकास कार्यक्रम उचित प्रकार से बना सकती है।

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लागत वक्रों की U-आकृति होने का सबसे बड़ा कारण फर्म को प्राप्त होने वाली आन्तरिक बचतें हैं। इन बचतों को निम्न चार श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है

1. श्रम सम्बन्धी बचतें - श्रम सम्बन्धी बचतें श्रम-विभाजन एवं विशिष्टीकरण का परिणाम होती है। जब उत्पादन अधिक मात्रा में किया जाता है तो श्रम विभाजन तथा विशिष्टीकरण भी उतना ही अधिक सम्भव हो जाता है। फलस्वरूप श्रमिकों को कार्यकुशलता में वृद्धि हो जाती है। जिससे प्रति इकाई उत्पादन लागत कम हो जाती है।

2. तकनीकी बचतें - उत्पादन तकनीक में सुधार करने पर जो बचतें प्राप्त होती हैं, उन्हें तकनीकी बचतें कहते हैं। आधुनिक मशीनें, बड़े आकार की मशीनें इत्यादि तकनीकी बचतें हैं। ऐसी स्थिति में उत्पादन जब अधिक मात्रा में होता है, तब प्रति इकाई लागत कम आती है। इसका कारण तकनीकी लागतों (स्थिर लागतों) का अधिक इकाइयों पर फैलना है।

3. विपणन की बचतें - जब फर्म अपने उत्पादन की मात्रा को बढ़ाती है, तब उस अनुपात में विक्रय लागतें नहीं बढ़ती हैं जिससे प्रति इकाई लागत कम हो जाती है। यदि फर्म अपनी वस्तु का उत्पादन दो गुना कर देती है, तो उसको विक्रय लागतों, जैसे-विज्ञापन एवं प्रसार में व्यय दो गुना नहीं करना पड़ेगा, फलस्वरूप उसकी प्रति इकाई लागत में कमी आयेगी।

4. प्रबन्धकीय बचतें - उत्पादन की मात्रा को बढ़ाने पर प्रबन्ध पर होने वाला व्यय क्रमशः कम हो जाता है। एक कुशल प्रबन्धक अधिक मात्रा में उत्पादन का प्रबन्ध उसी कुशलता के साथ कर सकता है, जितना कि थोड़े उत्पादन का।

उपर्युक्त कारणों से प्रारम्भ में लागत वक्र गिरते हैं। साधनों की अविभाज्यता तथा विशिष्टीकरण के कारण प्रारम्भ में उत्पादन बढ़ने पर लागतें गिरती हैं। परिवर्तनशील साधनों को बढ़ाते जाने पर एक सीमा पर उत्पादन का स्तर अनुकूलतम उत्पादन पर पहुँच जाता है।

इस समय साधनों का सर्वोत्तम संयोग स्थापित हो जाता है तथा लागतें न्यूनतम स्तर पर पहुँच जाती हैं। यदि उत्पादन बढ़ाने के लिए परिवर्तनशील साधनों को और अधिक मात्रा में बढ़ाया जाता है तो यह सर्वोत्तम संयोग भंग हो जाता है, क्योंकि अविभाज्य साधनों (मशीन, यन्त्र आदि) पर आवश्यक दबाव पड़ता है, फलस्वरूप लागतों में वृद्धि होने लगती है।

अतः स्पष्ट है कि अल्पकालीन लागत वक्र प्रारम्भ में गिरता है, फिर एक बिन्दु पर स्थिर होकर बढ़ता है, जिससे वह U आकार का हो जाता है।






चित्र - लागत वक्रों की आकृति


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स्टॉक का अर्थ होता है - भंडार या वह माल जो घर या गोदाम में हो और बिका न हो । 

पारिभाषिक रूप में हम कह सकते हैं कि स्टॉक वह भौतिक सामग्री होती है जो एक उत्पादक अथवा विक्रेता द्वारा बेचने के लिए संग्रह करके रखी जाती है । 

इसके अंतर्गत ऐसे माल को शामिल किया जाता है जो बिचा न हो । 

जैसे - शक्कर का स्टॉक , पुस्तक का स्टॉक इत्यादि ।  


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आय एवं रोजगार के निर्धारण - 2 अंकीय प्रश्न -

आय एवं रोजगार के निर्धारण -

प्रश्न - 1 - अत्यधिक मांग को ठीक करने के कोई दो उपाय लिखिए ।
उत्तर - अत्यधिक मांग को ठीक करने के दो उपाय निम्नानुसार हैं -

1. सार्वजनिक व्यय पर नियंत्रण - अत्यधिक मांग की दशा में सरकार को सड़कें बनाने , नहर व बांधों का निर्माण करने , स्कूल , अस्पताल एवं सार्वजनिक स्वास्थ्य जैसे कामों पर सार्वजनिक व्यय को कम कर देना चाहिए तथा साथ ही सरकार को र्सार्वजनिक क्षेत्र के उद्योगों में भी विनियोग को कम कर देना चाहिए ।

2. बचत का बजट बनाना - अत्यधिक मांग की स्थिति में सरकार को बचत का बजट बनाना चाहिए । बचत का बजट उसे कहते हैं , जिससे सार्वजनिक व्यय की तुलना में सार्वजनिक आय अधिक होती है ।
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प्रश्न - 2 - समग्र मांग तथा समग्र पूर्ति में अंतर लिखिए ।

क्रमांक

समग्र मांग

समग्र पूर्ति

1

समग्र मांग से अभिप्राय एक लेखा वर्ष के दौरान देश में उत्पादित समस्त वस्तुओं और सेवाओं पर किए जाने वाले व्यय के योग से है । 

  समग्र पूर्ति से अभिप्राय अर्थव्यवस्था में दिए हुए समय में खरीदने के लिए उपलब्ध उत्पाद से है । 

2

 समस्त वस्तुओं और सेवाओं पर कि समग्र मांग का मापन वस्तुओं और सेवाओं पर समुदाय द्वारा कुल व्यय पर किया जाता है । 

 समग्र पूर्ति वस्तुओं और सेवाओं के कुल उत्पादन को कहते हैं । 


 

 


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प्रश्न - 3 - प्रेरित निवेश तथा स्वतंत्र निवेश में अंतर लिखिए ।

क्रमांक

प्रेरित निवेश 

स्वतंत्र निवेश 

1

यह आय पर निर्भर होता है । 

इसका आय से संबंध नहीं होता । यह स्वतंत्र होता है ।

2

 यह आय लोच होता है । 

 यह आय लोच नहीं होता है। 


प्रश्न - 4 - समग्र मांग तथा समग्र पूर्ति में अंतर लिखिए ।

क्रमांक

समग्र मांग

समग्र पूर्ति

1

समग्र मांग से अभिप्राय एक लेखा वर्ष के दौरान देश में उत्पादित समस्त वस्तुओं और सेवाओं पर किए जाने वाले व्यय के योग से है । 

  समग्र पूर्ति से अभिप्राय अर्थव्यवस्था में दिए हुए समय में खरीदने के लिए उपलब्ध उत्पाद से है । 

2

 समस्त वस्तुओं और सेवाओं पर कि समग्र मांग का मापन वस्तुओं और सेवाओं पर समुदाय द्वारा कुल व्यय पर किया जाता है । 

 समग्र पूर्ति वस्तुओं और सेवाओं के कुल उत्पादन को कहते हैं । 


 

 


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प्रश्न - 5 - प्रभावी माँग से क्या आशय है ? इसकी अवधारणा को स्पष्ट कीजिए ।
अथवा 
जब अंतिम वस्तुओं की कीमत और व्याज की दर दी हुई हो तब आप स्वायत्त व्यय गुणक कैसे प्राप्त करेंगे ?
उत्तर - प्रभावी माँग / प्रभावपूर्ण माँग का आशय -

प्रभावी माँग , समस्त माँग का वह स्तर है जो आय के संतुलित स्तर पर निर्धारण में प्रभावी बन जाता है क्योंकि यह समग्र पूर्ति के बराबर होता है ।
स्वायत्त गुणक ज्ञात करना - स्वायत व्यय में प्रारम्भिक वृद्धि से कुल निर्गत संतुलन मूल्य में अधिक वृद्धि होती है । अंतिम वस्तु निर्गत के संतुलन मूल्य में वृद्धि और स्वायत्त व्यय में आरंभिक वृद्धि के कुल अनुपात को अर्थव्यवस्था का निर्गत गुणांक कहते हैं ।

निर्गत गुणांक =
जहां - डेल्टा Y = अंतिम वस्तु निर्गत की कुल वृद्धि 
C = MPC सीमांत उपभोग प्रवृत्ति 
डेल्टा A = स्वायत्त व्यय में वृद्धि 
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 राष्ट्रीय आय लेखांकन का महत्व लिखिए।

Answer:   राष्ट्रीय आय लेखांकन अर्थव्यवस्था के जटिल वित्तीय संव्यवहारों की प्रकृति व कारण निर्धारित कर अन्तर सम्बंधों को निर्धारित करने की एक विधि हैं :

राष्ट्रीय आय लेखांकन का महत्व :

(1) आर्थिक प्रगति का सूचक :- राष्ट्रीय आय लेखांकन आर्थिक प्रगति का सूचक होता हैं। इसके द्वारा देश की आर्थिक प्रगति की जानकारी प्राप्त होती हैं।

(2) राष्ट्रीय आय का वितरण :- राष्ट्रीय आय लेखांकन से इस बात की जानकारी मिलती हैं कि विभिन्न वर्गों में राष्ट्रीय आय का वितरण किस प्रकार का हैं।

(3) तुलानात्मक अध्ययन :- राष्ट्रीय आय लेखांकन तुलानात्मक अध्ययन में सहायक होती हैं। इससे विभिन्न देशों प्रगति की तुलना की जा सकती हैं।

(4) श्रम संघों के लिए महत्व :- राष्ट्रीय आय लेखांकन से श्रम संघों को यह ज्ञात होता है कि वे जिस उद्योग अंग उसका अर्थव्यवस्था में कितना योगदान हैं तथा वह कितना उत्पादन कर रहे हैं।

(5) आर्थिक विकास की कसौटी :- राष्ट्रीय आय लेखांकन आर्थिक विकास की कसौटी का निर्धारण करती हैं।


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काॅब डगलस उत्पादन फलन

उत्पादन के भौतिक साधनों तथा भौतिक उत्पादन स्तर के मध्य संबंध सदैव ही अर्थशास्त्रियों की दिलचस्पी का केंद्र रहा है विभिन्न अर्थशास्त्रियों ने भिन्न भिन्न प्रकार से सैद्धांतिक उत्पादन फलनों का प्रतिपादन किया तथा वास्तविक आंकड़ों के आधार पर उनका परीक्षण किया इसके विपरीत कुछ उत्पादन फलनों की  खोज वास्तविक आंकड़ों के आधार पर हुई काब डगलस उत्पादन फलन इन्हीं उत्पादन फलनों   की श्रेणी के अंतर्गत आता है
काॅॅब डगलस उत्पादन फलन वास्तव में राष्ट्रीय आय में साधनों के अंश की व्याख्या करने का एक प्रारंभिक प्रयास था इस उत्पादन फलन के आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है की राष्ट्रीय आय में श्रम तथा पूंजी साधनों के सापेक्षिक अंश सदैव स्थिर रहते हैं काॅब डगलस उत्पादन फलन को निम्न प्रकार से  व्यक्त किया जाता है
              Q=Aka  Lb
 जहांQ उत्पादन है और L तथाc क्रमश श्रम और पूंजी की आगतें है A.aऔर B धनात्मक प्राचल( pasitive parameters  है जहांa>0. B >0

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