निबंध -
“वन एवं वन्य प्राणी संरक्षण
में जन सामान्य की भूमिका” -
प्रकृति
ने मनुष्य को जो भी उपहार दिए हैं , उनमें वनों का महत्वपूर्ण स्थान है। यह मानव को
प्रकृति प्रदत्त एक अनुपम उपहार है। हमारे जीवन में जिन पाँच तत्वों यथा - भूमि, आकाश, जल, अग्नि, वायु का सर्वाधिक महत्व है; उन सभी से वनों का गहरा
और गूढ़ संबंध है। भूमि से वनों की यदि बात करें, तो ये मृदा को
बांधकर रखते हैं। वन वर्षा करने में सहायक होकर जलस्तर को सामान्य बनाए रखते हैं। वनों
से प्राप्त लकड़ी से अग्नि उत्पन्न होती है। वन हमें वायु प्रदान कर तापमान को सामान्य
बनाए रखने में सहयोगी हैं। वन बादलों को आकर्षित कर वर्षा कराने में सहयोगी हैं । समग्र
रूप से कहा जाए , तो वन हमारे जीवन का आधार हैं ।
वन्य जीवों का वनों से आत्मीय संबंध है। वन्यप्राणियों के लिए वन ही उनका आवास
, और उनका परिवार है। वनों में ही उनको रहने योग्य अनुकूल जलवायु, भोजन, आवास उपलब्ध होता है । जनसामान्य भले ही वनों
को झाड़ियों, पेड़ों, ऊबड़ - खाबड़ जगह (जिसमें
कोई क्रमबद्धता नहीं है) के रूप में देखता हो, लेकिन वन्यप्राणियों
के लिए वह सर्वस्व है । यदि वन नहीं रहेंगे तो वन्यजीव भी नहीं रहेंगे और वन्यजीव नहीं
रहेंगे , तो पारिस्थितिक असंतुलन पैदा हो जाएगा । वन का पारिस्थितिक
तंत्र वन्यजीवों के साथ साथ मानव जाति के लिए भी अत्यंत महत्वपूर्ण है । वन की धरती इन जीवों के लिए बिछौना और वृक्षों
की छाया उनके लिये चादर है।
वनों में तरह-तरह
के वन्य जीव रहते हैं, जिनका रूप, रंग
आकार, उनकी जीवन शैली और स्वभाव भिन्न-भिन्न हैं। वन्य जीव
हमारे पर्यावरण की शोभा हैं। वन्य प्राणी और पक्षी नयनाभिराम और मनमोहक दृश्य तो देते
ही हैं, उसके साथ वातावरण में सुन्दरता बनाए रखने में भी
महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
जंगलों को काटना , मानवीय लापरवाही से दावाग्नि , बढ़ता प्रदूषण आदि वन
एवं वन्यजीवों के नष्ट होने के प्रमुख कारण हैं । इन सभी बातों के बावजूद मानव ने
वन्य जीवों का शिकार इस निर्ममता के साथ किया कि कुछ वन्य प्राणियों की प्रजाति ही
लुप्तप्राय हो गई और कुछ अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं । धरती पर पेय जल
की कमी, सूखा ,अल्पवर्षा, मृदा अपरदन जैसी प्राकृतिक विपदायें वन और वन्य प्राणियों को नष्ट
करने के दुष्परिणाम हैं।
अब
प्रश्न यह उठता है, कि इस प्रकार नष्ट होते
वन एवं वन्यजीवों का संरक्षण किस तरह से किया जाए, ताकि हमारा
पर्यावरण संतुलित रहे। इसमें सर्वप्रमुख भूमिका मानव की ही होनी चाहिए। जंगलों को न
काटा जाए, उन्हें आग से बचाया जाए और मानव का हस्तक्षेप कम से
कम किया जाए । देखने में आता है कि वनों को
औषधियों, लकड़ियों, छाल आदि के उद्देश्यस
से हानि पहुंचाई जाती है। सड़क, रेलवे, मानव
बस्तियों के विकास, बांध, कृषि आदि के लिए
वनों को काटा जाता है। वनों से लाभ लेने के लिए विवेकपूर्ण तकनीकी का प्रयोग किया जाना
चाहिए । सरकारी दिशानिर्देशों का पालन करना अति आवश्यक है।
भारतीय वन अधिनियम 1927, वन्य प्राणी (संरक्षण) अधिनियम
1972, पशु अतिचार
अधिनियम 1871, वन (संरक्षण) अधिनियम 1980, मध्य प्रदेश काष्ठ चिरान (विनियमन) अधिनियम 1984,
मध्य प्रदेश वन उपज के करारों का पुनरीक्षण अधिनियम 1987,
मध्य प्रदेश वन भूमि शाश्वत पट्टा प्रतिसंहरण अधिनियम 1973 के उपबंधों का पालन करना
होगा ।
शासन द्वारा अनेक परियोजनाएं और योजनाएँ
प्रारम्भ की गई हैं । टाइगर प्रोजेक्ट, हाथी प्रोजेक्ट आदि का आरंभ बाघों और हाथियों
के संरक्षण के उद्देश्य से किया गया है । इन सभी परियोजनाओं की सफलता मानव के विवेक
पर निर्भर करती है । समग्र बातों पर यदि दृष्टि डाली जाए, तो
ज्ञात होता है, कि वन एवं वन्य प्राणियों का संरक्षण केवल मानव
के हाथों में ही है। समय पर यदि हम न जागे, तो पंचतत्व से बने
हुए इस शरीर और संसार में असंतुलन पैदा हो जाएगा और जीवन संकटमय हो जाएगा । इसीलिए
समय रहते हुए मानव द्वारा वन और वन्यजीवों के साथ आत्मीय संबंध स्थापित करना होगा ।
तभी इनका संरक्षण संभव है ।
“वन की शोभा बनी रहे नित,
ऐसा हो संकल्प हमारा ।
प्राणों में शक्ति इनसे है ,
वन्यजीवों का यही सहारा ॥“
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