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अपठित बोध -

 अपठित बोध -

"अपठित बोध" का अर्थ - 'जो पहले पढ़ा न गया हो'। यह हिंदी भाषा की परीक्षा का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसमें हमें एक गद्यांश या काव्यांश (पद्यान्श) दिया जाता है जिसे हमने पहले अपनी पाठ्यपुस्तक में नहीं पढ़ा हो। हमें गद्यांश या काव्यांश (पद्यान्श) अंश को ध्यान से पढ़कर उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर देने होते हैं।

उद्देश्य - इसका मुख्य उद्देश्य हमारी समझने, विश्लेषण करने और अपने शब्दों में व्यक्त करने की क्षमता का मूल्यांकन करना होता है।


अपठित गद्यांश (Unseen Prose) -

अपठित गद्यांश को हल करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए -

  • शांत मन से पढ़ें: गद्यांश को कम से कम दो बार ध्यानपूर्वक पढ़ना चाहिए। पहली बार में गद्यांश का मूल भाव या केंद्रीय विचार समझने की कोशिश करना चाहिए।
  • प्रश्नों को पढ़ें - गद्यांश पढ़ने के बाद, सभी प्रश्नों को ध्यान से पढ़ना चाहिए। इससे यह पता चल जाएगा कि हमें गद्यांश में किन बिंदुओं को खोजना है।
  • उत्तर खोजें - अब प्रश्नों को ध्यान में रखकर गद्यांश को पुनः पढ़ना चाहिए। जिन पंक्तियों में उत्तर मिलने की संभावना हो, उन्हें पेंसिल से हल्का-सा रेखांकित कर सकते हैं।
  • अपने शब्दों में उत्तर लिखें - प्रश्नों के उत्तर गद्यांश की भाषा में ज्यों-का-त्यों न लिखर उत्तर अपनी भाषा में, स्पष्ट और संक्षिप्त लिखना चाहिए।
  • शीर्षक का चुनाव - यदि प्रश्न में 'शीर्षक' (title) पूछा गया है, तो ऐसा शीर्षक लिखना चाहिए जो गद्यांश के केंद्रीय भाव को व्यक्त करता हो। शीर्षक छोटा और आकर्षक होना चाहिए।
  • व्याकरण संबंधी प्रश्न - विलोम, पर्यायवाची, मुहावरे, लोकोक्ति आदि व्याकरण से संबंधित प्रश्नों का उत्तर गद्यांश के संदर्भ में ही देन चाहिए।

उदाहरण -

गद्यांश:

सच्चा उत्साह वही होता है जो मनुष्य को कार्य करने के लिए प्रेरणा देता है। मनुष्य किसी भी कारणवश जब किसी कष्ट या हानि को सहने के लिए तैयार हो जाता है, तब उस तैयारी में ही उसे उत्साह का अनुभव होता है। साहस और धीरज के साथ-साथ उत्साह का भी संयोग होना आवश्यक है। बिना उत्साह के साहस और धीरज निरर्थक हो सकते हैं। उत्साही व्यक्ति अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति के बल पर आने वाली हर बाधा का सामना करने के लिए तैयार रहता है। उत्साही व्यक्ति के लिए कोई भी कार्य असंभव नहीं होता। वह अपने कर्म के मार्ग पर अडिग रहता है और अंत में सफलता प्राप्त करता है।

प्रश्न:

  1. सच्चा उत्साह किसे कहते हैं?
  2. उत्साही व्यक्ति के गुण क्या होते हैं?
  3. लेखक ने साहस और धीरज को किसके बिना निरर्थक माना है?
  4. 'असंभव' शब्द का विलोम गद्यांश में से खोजकर लिखिए।
  5. इस गद्यांश के लिए उपयुक्त शीर्षक क्या होगा?

उत्तर:

  1. सच्चा उत्साह वह है जो मनुष्य को किसी भी कार्य को करने के लिए प्रेरित करता है और उसे कष्ट सहने की शक्ति देता है।
  2. उत्साही व्यक्ति साहसी, धैर्यवान और दृढ़ इच्छाशक्ति वाला होता है। वह किसी भी बाधा का सामना करने के लिए हमेशा तैयार रहता है।
  3. लेखक ने साहस और धीरज को 'उत्साह' के बिना निरर्थक माना है।
  4. असंभव का विलोम गद्यांश में 'संभव' है (यद्यपि यह सीधे नहीं दिया गया है, लेकिन "कोई भी कार्य असंभव नहीं होता" से इसका भाव स्पष्ट है)।
  5. इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक "उत्साह का महत्व" या "सच्चा उत्साह" हो सकता है।

अपठित काव्यांश (Unseen Poetry) -

अपठित काव्यांश में भाव और भाषा दोनों ही लाक्षणिक (figurative) होते हैं। अतः इसे हल करने के लिए इसे ध्यान से पढ़ना आवश्यक है। 

हल करने की विधि -

  • कविता को लय के साथ पढ़ें - काव्यांश को दो-तीन बार ध्यान से पढ़ें। इससे कविता का मूल भाव (emotion) और संदेश समझने में मदद मिलती है।
  • भाव को समझें - यह जानने की कोशिश करें कि कवि क्या कहना चाहता है। कविता का केंद्रीय भाव क्या है - वीरता, प्रेम, प्रकृति, भक्ति या सामाजिक संदेश?
  • प्रश्नों को समझें - प्रश्नों को ध्यान से पढ़ें और समझें कि प्रश्नकर्ता क्या पूछना चाहता है।
  • पंक्तियों से संबंध जोड़ें - प्रश्नों का संबंध काव्यांश की किन पंक्तियों से है, यह जानने की कोशिश करें।
  • प्रतीकों और अलंकारों को पहचानें - कविता में प्रयुक्त प्रतीकों (symbols) और अलंकारों (figures of speech) को समझने का प्रयास करना चाहिए, क्योंकि ये गहरे अर्थ छिपाए होते हैं।
  • सरल भाषा में उत्तर दें - उत्तर सरल और स्पष्ट भाषा में दें। कविता की पंक्तियों को सीधे उत्तर में न लिखें।

उदाहरण -

काव्यांश -

सच हम नहीं, सच तुम नहीं,
सच है महज संघर्ष ही।
संघर्ष से हटकर जिए तो
क्या जिए हम या कि तुम।
जो नत हुआ, वह मृत हुआ,
ज्यों वृंत से झरकर कुसुम।
जो पंथ भूल रुका नहीं,
जो हार देख झुका नहीं,
जिसने मरण को भी लिया हो जीत,
है जीवन वही।

प्रश्न -

कवि ने जीवन का सच किसे माना है?
कवि के अनुसार, कैसा व्यक्ति मृत समान है?
'वृंत से झरकर कुसुम' का क्या आशय है?
असली जीवन किसका है?
इस काव्यांश का केंद्रीय भाव क्या है?

उत्तर -

  1. कवि ने जीवन का एकमात्र सच 'संघर्ष' को माना है।
  2. कवि के अनुसार, जो व्यक्ति परिस्थितियों के सामने झुक जाता है या हार मान लेता है, वह मरे हुए के समान है।
  3. 'वृंत से झरकर कुसुम' का आशय है - डाली से टूटकर गिरे हुए फूल की तरह अस्तित्वहीन हो जाना।
  4. असली जीवन उसी का है जो रास्ते में आने वाली बाधाओं से घबराता नहीं है, हार से झुकता नहीं है और मृत्यु पर भी विजय प्राप्त कर लेता है।
  5. इस काव्यांश का केंद्रीय भाव है - निरंतर संघर्ष करते रहना ही जीवन है।


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