Contact Form

Name

Email *

Message *

छंद

छंद

वर्णों अथवा मात्राओं की गणना, गति , यति , लय , तुक इत्यादि से नियोजित काव्य रचना छंद कहलाती है।

उदाहरण

जय हनुमान ज्ञान गुन सागर । जय कपीस तिहुँ लोक उजागर ॥

राम दूत अतुलित बल धामा । अंजनि पुत्र पवनसुत नामा ॥

छंद के प्रकार -

छंदों को मुख्यतया दो भागों में वर्गीकृत किया जाता है -

  1. मात्रिक छंद ,
  2. वर्णिक छंद ।

मात्रिक छंद - जिन छंदों की रचना मात्राओं की संख्या या गणना के आधार पर की जाती है, उन्हें मात्रिक छंद कहते हैं ।

उदाहरण - चौपाई , दोहा , सोरठा आदि ।

वर्णिक छंद - जिन छंदों की रचना वर्णों की गणना के आधार पर की जाती हैं उन्हें वर्णिक छंद कहते हैं ।

उदाहरण - सवैया ।


चौपाई -

चौपाई एक सममात्रिक छंद है। इसमें चार चरण होते हैं। प्रत्येक चरण में 16-16 मात्राएँ होती हैं। चरण के अंत में गुरू लघु का निषेध होता है।

उदाहरण -

। । S । । । । । । । । S S । । । । S । । । । । । S S = 16 मात्राएँ

बरषा बिगत सरद रितु आई। लछमन देखहु परम सुहाई॥

S S S । । । । । । S S । । । । S । । । । । । S S = 16 मात्राएँ

फूलें कास सकल महि छाई। जनु बरषाँ कृत प्रगट बुढ़ाई॥


दूसरा उदाहरण -

बंदऊँ गुरु पद पदुम परागा। सुरुचि सुबास सरस अनुरागा।।

अमिअ मूरिमय चूरन चारू। समन सकल भव रुज परिवारू॥


रोला -

रोला एक सममात्रिक छंद है, जिसमें प्रत्येक चरण में 24 मात्राएँ होती हैं। प्रत्येक चरण में 11 और 13 मात्राओं पर यति (विराम) होता है। इसका आशय है कि प्रत्येक पंक्ति में दो चरण होते हैं, पहले चरण में 11 मात्राएँ और दूसरे में 13 मात्राएँ होती हैं।

उदाहरण -

ऽ ऽ।। ।। ऽ। ।।। ।। ।। ऽ।। ऽ – 24 मात्राएँ
नीलाम्बर परिधान, हरित पट पर सुन्दर है।
ऽ। ऽ। ।। ।।। ऽ। ऽ ऽ ऽ।। ऽ – 24 मात्राएँ
सूर्य चन्द्र युग मुकुट, मेखला रत्नाकर है।
।। ऽ ऽ। । ऽ। ऽ। ऽ ऽ ऽ।। ऽ – 24 मात्राएँ
नदियां प्रेम-प्रवाह, फूल-तारा-मण्डल है।
ऽ ऽ।। ।। ऽ। ऽ। ।। ऽ ऽ।। ऽ – 24 मात्राएँ
बन्दीजन खगवृंद, शेष फन सिंहासन है।।

---------------

नन्दन वन था जहाँ, वहाँ मरूभूमि बनी है। 
जहाँ सघन थे वृक्ष, वहाँ दावाग्नि घनी है।। 
जहाँ मधुर मालती, सुरभि रहती थी फैली। 
फूट रही है आज, वहाँ पर फूट विषैली।।

---------------

हुआ बाल रवि उदय, कनक नभ किरणें फूटीं।
भरित तिमिर पर परम, प्रभामय बनकर टूटीं।
जगत जगमगा उठा, विभा वसुधा में फैली।
खुली अलौकिक ज्योति-पुंज की मंजुल थैली।।

--------------

जीती जाती हुई, जिन्होंने भारत बाजी।
निज बल से बल मेट, विधर्मी मुगल कुराजी।।
जिनके आगे ठहर, सके जगी न जहाजी।
है ये वही प्रसिद्ध, छत्रपति भूप शिवाजी।।

---------------

मुक्तक छंद -

मुक्तक छंद उस रचना को कहते हैं, जिसमें वर्णों और मात्राओं का बंधन नहीं होता । हिंदी में स्वतंत्र रूप से आजकल लिखे जाने वाले छंद मुक्त छंद होते हैं। इसे ‘स्वच्छंद छंद’ भी कहा गया है। इस प्रकार के छंद में चरणों की अनियमित, असमान, स्वछन्द गति होती है।

उदाहरण -

मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई,
मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई ।
जाके सर मोर मुकुट मेरो पति सोई,
मेरे तो गिरधर गोपाल दूसरो न कोई॥

---------------

मीरा की प्रभु प्रीत पर, दुनिया को है नाज।
महल छोड़ बन साधवी,पहनी सेवा ताज।
नाम जपे जग आज तक,अमर रहे यह भक्त ।
मीरा जैसी भक्त बन,जीवन का रख लाज 

---------------

Post a Comment

0 Comments