लेखक - शक्ति पटेल (राष्ट्रपति पुरस्कार से सम्मानित शिक्षक)
- B.A.(1st Rank in University, 4 Gold Medalist), M.A.(Sociology, Economics, Psychology, Education, Hindi), M.S.W., B.Ed., P.G.D.C.A., C.H.R., Diploma in Tribal Development (First Rank in University), P.G.D.R.D. (Enrolled), UGC-NET/JRF (Sociology), UGC-NET/Lectureship (Social Work)
शब्द गुण (काव्य गुण)-
परिभाषा - काव्य में आंतरिक सौन्दर्य तथा रस के प्रभाव एवं उत्कर्ष के लिए स्थायी रूप से विद्यमान मानवोचित भाव और धर्म या तत्व को काव्य गुण ( शब्द गुण ) कहते हैं । यह काव्य में उसी प्रकार विद्यमान होता है , जैसे फूल में सुगन्धि।
काव्य गुण के प्रकार -
काव्य गुण तीन प्रकार के होते हैं - 1. माधुर्य गुण, 2. ओज गुण 3. प्रसाद गुण ।
माधुर्य गुण - जहां किसी काव्य को पढ़ने, सुनने या उसका अभिनय देखने से ह्रदय में मधुरता का संचार होता है, वहाँ माधुर्य गुण होता है। यह गुण विशेष रूप से शृंगार, शांत, एवं करुण रस में पाया जाता है । माधुर्य गुण युक्त काव्य में कानों को प्रिय लगने वाले मृदु वर्णों का प्रयोग होता है । समें कठोर एवं संयुक्ताक्षर वाले वर्णों का प्रयोग प्रायः नहीं किया जाता ।
उदाहरण -
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ओज गुण - जिस काव्य को पढ़ने, सुनने या देखने से ह्रदय में ओज, उमंग और उत्साह का संचार होता है, वहाँ ओज गुण की प्रधानता होती हैं। यह गुण मुख्य रूप से वीर, वीभत्स और भयानक रस में पाया जाता है । इस प्रकार के काव्य में कठोर संयुक्ताक्षर वाले वर्णों का प्रयोग होता है । जैसे - ट, ठ, ड, ढ,ण एवं र के संयोग से बने शब्द , सामासिक शब्द आदि ।
उदाहरण -
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प्रसाद गुण - जब किसी काव्य को पढ़ने या सुनने से उसका अर्थ बिना किसी प्रयास के तुरंत स्पष्ट हो जाता है, तो उस काव्य को प्रसाद गुण से युक्त माना जाता है। प्रसाद गुण वाली रचनाएँ सरल भाषा में लिखी जाती हैं, जिससे पाठक को समझने में आसानी होती है।
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