अलंकार-
परिभाषा - काव्य की शोभा या सुंदरता में वृद्धि करने वाले साधनों को अलंकार कहते हैं । अलंकार, शब्द और अर्थ के माध्यम से काव्य को सजाने वाले तत्वों को कहते हैं।
अलंकार के प्रकार -
अलंकार को मुख्यतया दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता है - शब्दालंकार और अर्थालंकार।
- शब्दालंकार - जब काव्य में शब्दों के प्रयोग से सौन्दर्य उत्पन्न होता है, तो उसे शब्दालंकार कहते हैं।
- अर्थालंकार - जब काव्य में अर्थ के माध्यम से सौन्दर्य उत्पन्न होता है, तो उसे अर्थालंकार कहते हैं। इसके अंतर्गत उअर्थालंकार - जब काव्य में अर्थ के माध्यम से सौन्दर्य उत्पन्न होता है, तो उसे अर्थालंकार कहते हैं।इसके अंतर्गत उपमा, रूपक , उत्प्रेक्षा , अतिशयोक्ति , वक्रोक्ति , अन्योक्ति आदि अलंकार आते हैं।
- उभयालंकार - जब काव्य में शब्द और अर्थ दोनों के माध्यम से सौन्दर्य उत्पन्न होता है, तो उसे उभ्यालंकार कहते हैं।
वक्रोक्ति अलंकार - जब किसी व्यक्ति के एक अर्थ में कहे गए शब्द या वाक्य का कोई दूसरा व्यक्ति जान बूझकर दूसरा अर्थ कल्पित करे अथवा जहाँ पर वक्ता के द्वारा बोले गए शब्दों का श्रोता अलग अर्थ निकाले उसे वक्रोक्ति अलंकार कहते है।
"है पशुपाल कहाँ सजनी! जमुना-तट धेनु चराय रहो री।"
लक्ष्मी कहती है- वह पशुपाल ( पशुपति – शिव का नाम) कहाँ है? पार्वती पशुपाल का दूसरा अर्थ पशुओं का पालक कल्पित करके उत्तर देती है-यमुना-तट के किनारे गायें चरा रहा होगा (विष्णु कृष्णावतार में यमुना-तट पर गायें चराते थे।)
कौन द्वार पर? हरि मैं राधे!
क्या वानर का काम यहाँ?
राधा भीतर से पूछती है-बाहर तुम कौन हो? कृष्ण उत्तर देते हैं-राधे मैं हरि हूँ। राधा हरि का अर्थ कृष्ण न लगाकर वानर लगाती है और कहती है कि इस नगर में वानर का क्या काम?
कृष्ण द्वारा एक अर्थ में कहे गये ’हरि’ शब्द का राधा दूसरा अर्थ वानर कल्पित करती है।
उसने कहा अपर कैसा? वह तो उड़ गया सफर है॥
दृष्टांत अलंकार -
जहाँ उपमेय और उपमान तथा उनके साधारण धर्मों में बिंब प्रतिबिंब भाव होता है वहाँ दृष्टांत अलंकार की रचना होती है। यह एक अर्थालंकार है।
अथवा
जहाँ एक विचार या बात को स्पष्ट करने के लिए उससे मिलती-जुलती दूसरी बात उदाहरण के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, वहाँ दृष्टांत अलंकार होता है। इसे बिम्ब-प्रतिबिम्ब भाव भी कहा जाता है, जहाँ पहली बात का प्रतिबिम्ब दूसरी बात में दिखाई देता है।
दृष्टांत अलंकार की विशेषताएँ:
यहाँ, जीवन में सुख-दुःख के आने-जाने की बात, बादल में चाँद के छिपने और फिर दिखने के समान बताई गई है।
उदाहरण 2 -
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