लागत वक्रों की U-आकृति होने का सबसे बड़ा कारण फर्म को प्राप्त होने वाली आन्तरिक बचतें हैं। इन बचतों को निम्न चार श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है
1. श्रम सम्बन्धी बचतें - श्रम सम्बन्धी बचतें श्रम-विभाजन एवं विशिष्टीकरण का परिणाम होती है। जब उत्पादन अधिक मात्रा में किया जाता है तो श्रम विभाजन तथा विशिष्टीकरण भी उतना ही अधिक सम्भव हो जाता है। फलस्वरूप श्रमिकों को कार्यकुशलता में वृद्धि हो जाती है। जिससे प्रति इकाई उत्पादन लागत कम हो जाती है।
2. तकनीकी बचतें - उत्पादन तकनीक में सुधार करने पर जो बचतें प्राप्त होती हैं, उन्हें तकनीकी बचतें कहते हैं। आधुनिक मशीनें, बड़े आकार की मशीनें इत्यादि तकनीकी बचतें हैं। ऐसी स्थिति में उत्पादन जब अधिक मात्रा में होता है, तब प्रति इकाई लागत कम आती है। इसका कारण तकनीकी लागतों (स्थिर लागतों) का अधिक इकाइयों पर फैलना है।
3. विपणन की बचतें - जब फर्म अपने उत्पादन की मात्रा को बढ़ाती है, तब उस अनुपात में विक्रय लागतें नहीं बढ़ती हैं जिससे प्रति इकाई लागत कम हो जाती है। यदि फर्म अपनी वस्तु का उत्पादन दो गुना कर देती है, तो उसको विक्रय लागतों, जैसे-विज्ञापन एवं प्रसार में व्यय दो गुना नहीं करना पड़ेगा, फलस्वरूप उसकी प्रति इकाई लागत में कमी आयेगी।
4. प्रबन्धकीय बचतें - उत्पादन की मात्रा को बढ़ाने पर प्रबन्ध पर होने वाला व्यय क्रमशः कम हो जाता है। एक कुशल प्रबन्धक अधिक मात्रा में उत्पादन का प्रबन्ध उसी कुशलता के साथ कर सकता है, जितना कि थोड़े उत्पादन का।
उपर्युक्त कारणों से प्रारम्भ में लागत वक्र गिरते हैं। साधनों की अविभाज्यता तथा विशिष्टीकरण के कारण प्रारम्भ में उत्पादन बढ़ने पर लागतें गिरती हैं। परिवर्तनशील साधनों को बढ़ाते जाने पर एक सीमा पर उत्पादन का स्तर अनुकूलतम उत्पादन पर पहुँच जाता है।
इस समय साधनों का सर्वोत्तम संयोग स्थापित हो जाता है तथा लागतें न्यूनतम स्तर पर पहुँच जाती हैं। यदि उत्पादन बढ़ाने के लिए परिवर्तनशील साधनों को और अधिक मात्रा में बढ़ाया जाता है तो यह सर्वोत्तम संयोग भंग हो जाता है, क्योंकि अविभाज्य साधनों (मशीन, यन्त्र आदि) पर आवश्यक दबाव पड़ता है, फलस्वरूप लागतों में वृद्धि होने लगती है।
अतः स्पष्ट है कि अल्पकालीन लागत वक्र प्रारम्भ में गिरता है, फिर एक बिन्दु पर स्थिर होकर बढ़ता है, जिससे वह U आकार का हो जाता है।
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