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निबन्ध का विकासक्रम -

निबन्ध -


'निबन्ध' - नि+बन्ध से बना है, जिसका अर्थ है - नियोजित तरीके से बंधी हुई रचना। निबंध अपने आधुनिक रूप में ऐसे ( ESSAY ) ' शब्द का पर्याय है। 

अंग्रेजी में इसका अर्थ है प्रयत्न, प्रयोग अथवा परीक्षण । 

बाबू गुलाबराय के अनुसार 'निबंध उस गद्य रचना को कहते हैं, जिसमें एक सीमित आकार के भीतर किसी विषय का वर्णन या प्रतिपादन एक विशेष निजीपन, स्वच्छंदता, सौष्ठव और सजीवता तथा आवश्यक संगति और सम्बद्धता के साथ किया गया हो। '


निबन्ध गद्य की सर्वोत्तम विधा है- 'गद्यं कवीनां निकषं वदन्ति' - रामचन्द्र शुक्ल 


'निबन्ध' का अभिप्राय है किसी वस्तु को सम्यक रूप से बाँधना।' अर्थात् 'निबन्ध' वह रचना है जिसमें किसी विशिष्ट विषय से सम्बन्धित तर्क संगत विचार परस्पर गुंथे हुए हों।


भारतेन्दु युग -

हिंदी निबंध साहित्य का प्रारंभ भारतेन्दु युग से होता है। 

'लेवी प्राण लेवी' ( 1870) नामक रचना से निबंध लेखन की शुरूआत मानी जाती है।

भारतेन्दु ने ज्ञान-विज्ञान के विविध क्षेत्र यथा इतिहास, धर्म, दर्शन, पुरातत्व विषयों पर निबंध लिखे।

इस युग के अन्य प्रमुख निबंधकार थे - पं. प्रतापनारायण मिश्र, बालकृष्ण भट्ट आदि ।

इन निबंधकारों का उद्देश्य, उपदेश, उद्बोधन, आह्वान, व्याख्या, व्यंग्य - हास्य आदि माध्यमों से जनता

को शिक्षित करना था।

भारतेन्दु युग का निबंध- साहित्य विषय-वस्तु तथा रचना - शिल्प दोनों दृष्टियों से वैविध्यपूर्ण था।

सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, धार्मिक, साहित्यिक आदि सभी प्रकार के विषयों पर निबंध लिखे गए।

, शैली की दृष्टि से वर्णनात्मक, विवरणात्मक, भावात्मक आदि सभी शैलियों का प्रयोग विषयानुरूप किया गया।

जनोन्मुख विषय चयन एवं कलात्मक अभिव्यक्ति इस युग के निबंध की विशेषता रही।

विभिन्न निबन्ध एवं निबंधकार हैं -

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र- 'स्वर्ग में विचार सभा का अधिवेशन', 'ईश्वर बड़ा विलक्षण है', 'एक अदभुत अपूर्व स्वप्र',

'सूर्योदय', 'पाँचवें पैगंबर', 'कश्मीर कुसुम' ।

बालकृष्ण भट्ट - 'चढ़ती उमर', 'चंद्रोदय', 'बातचीत', 'आँख', 'ईश्वर भी क्या ठठोल है', 'मेला', 'ठेला', 'वकील',
'आशा', 'आत्मनिर्भरता'।

प्रतापनारायण मिश्र - 'बुढ़ापा', 'भौं', 'दाँत', 'आप', 'पेट', 'धोखा', 'बात', 'वृद्ध', 'परीक्षा', 'नास्तिक', 'मनोवेग" ।

बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन'- हिन्दी भाषा का विकास', 'उत्साह', 'आलम्बन', "परिपूर्ण', "प्रवास'।

द्विवेदी युग -

आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी जी का युग हिन्दी निबंध विकास यात्रा का महत्वपूर्ण सोपान है। स्वयं द्विवेदी जी ने 

निबंध लेखन के साथ - साथ 23 निबंधों के हिन्दी अनुवाद भी किए जिसका प्रकाशन 'सरस्वती' पत्रिका में हुआ। 

'हंस का नीर- शीर विवेक कवियों की उर्मिला विषयक उदासीनता' आदि " प्रसिद्ध निबंध हैं जिनकी युगान्तरकारी 

भूमिका है।

द्विवेदी युग के अन्य प्रसिद्ध निबन्धकार हैं-


चन्द्रधर शर्मा गुलेरी - "कछुआ धर्म", "न्याय बेटा", मारेसि मोहि कुठाँव, 

श्याम सुन्दर दास-'समाज और साहित्य' इत्यादि ।

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल जिन्होंने भाव एवं मनोविकार संबंधी तथा विचारात्मक, चिंतनपरक, तार्किक निबंध लिखे।

निबंध को श्रेष्ठ साहित्यिक विधा के रूप में प्रतिष्ठित करने का श्रेय आचार्य शुक्ल को जाता है। इस युग में लिखे गए

भाषा तथा व्याकरण विषयक निबंधों ने भाषा को व्यवस्थित रूप देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 

द्विवेदी जी के कठोर अनुशासन के कारण निबंधों में निबंधकार के व्यक्तित्व का समावेश नहीं हो पाया।

इस युग के प्रमुख निबंधकार-

महावीर प्रसाद द्विवेदी- 'प्रतिभा', 'क्रोध', 'लोभ', 'कविता', 'साहित्य सन्दर्भ', 'साहित्य सीकर', "विचार विमर्श', 'कवि और कविता "।

बाबू श्यामसुन्दर दास- साहित्यलोचन', 'गद्य कुसुमावली' । 


शुक्ल युग -

हिन्दी निबंध साहित्य के आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के योगदान के कारण इस युग को शुक्ल युग के नाम जाना जाता

है। इस युग में विभिन्न विषयों में विभिन्न भाव धाराओं के निबंध लिखे गए। विचारात्मक, हास्य-व्यंग्य मूलकता,

साहित्यिक विषय, भाव परकता, अनुभूति गहनता इस युग के निबंधों की विशेषता रही है । रामचन्द्र शुक्ल के

जायसी ग्रंथावली की भूमिका, भ्रमरगीत सार की 1 भूमिका' समालोचनात्मक निबंध इसी युग में लिखे गए।

बाबू गुलाब राय, पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, सियारामशरण गुप्त, मुंशी प्रेमचन्द, पाण्डेय बेचन शर्मा 'उग्र' आदि 

के निबंधों ने इस काल को समृद्ध किया । संक्षेप में कहा जा सकता है कि भाव परक, मनोवैज्ञानिक, विचारात्मक,

निबंधों के सृजन से इस युग का निबंध साहित्य कथ्य एवं शिल्प वैविध्य की दृष्टि से महत्वपूर्ण रहा। यद्यपि इस युग

के निबंधों में वैयक्तिकता की प्रधानता है।

कुछ महत्वपूर्ण निबंधकार निम्नानुसार हैं-

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल - "चिंतामणि भाग-1,2', 'त्रिवेणी'।

बाबू गुलाबराय - फिर निराशा क्यों', 'ठलुआ क्लब', 'हिन्दी साहित्य का सुबोध इतिहास' । पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी- 'उत्सव', 'समाज-सेवा', 'विज्ञान', 'प्रबंध परिजात', प्रदीप पंचपात्र

डॉ. रघुवीर सिंह- 'जीवन कण', 'शेष स्मृतियाँ', 'ताज', ' फतेहपुर सीकरी ।

सियारामशरण गुप्त - झूठ-सच ।

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शुक्लोत्तर युग -

यह वह समय है जब निबंध विधा अध्ययन-अध्यापन का केन्द्र बनीं। इस युग में निबंध के तीन प्रकार देखने को

मिलते हैं- 1. विचारात्मक निबंध, 2. भावात्मक निबंध, 3. हास्य-व्यंग्य प्रधान निबंध ।

विचारात्मकता, भावात्मकता को सांस्कृतिक धरातल पर आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी ने निबंधों में वाणी दी।

सामाजिक विसंगतियों पर श्री हरिशंकर परसाई ने तथा डॉ. नगेन्द्र एवं आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी ने विचारात्मक 

एवं समीक्षात्मक निबंध लिखे ।

इस युग के महत्वपूर्ण निबंधकार हैं-

आचार्य नन्ददुलारे वाजपेयी - ' हिन्दी साहित्यः बीसवीं शताब्दी' ।

डॉ. नगेन्द्र- 'विचार और अनुभूति', 'आलोचक की आस्था ।

सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन 'अज्ञेय' - 'त्रिशंकु', 'भवन्ति'।

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