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कोकिल काहे ना बोले तू ? - कविता

 कोकिल काहे ना बोले तू ?

कोकिल काहे ना बोले तू ?
आया अब रितुराज है।
मन चंचल अति उत्सुक देख तो,
नृत्य करन को आज है।।
 
सूनी आम की डाली है री,
स्वर तेरा जो सोया है।
बगिया सूनी तुझ बिन हो गई,
मन व्याकुल हो रोया है।।
 
एक कूक तो मुझे सुना दे,
मन को राहत मिल जाए।
मोर सा नर्तन हो जाएगा,
बगिया आम की खिल जाए।।
 
षड्ज ऋषभ गंधार मध्यमा,
पंचम धैवत और निषाद।
सोये हैं कोकिल बिन तेरे,
नहीं करत हैं वे संवाद।।
 
धरा कर रही हिय उद्वेलित,
मन में ना सुर-साज है।
कोकिल काहे ना बोले तू,
आया अब रितुराज है।।
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रचनाकार -
शक्ति पटेल (शिक्षक)
www.shaktipatel.in

 

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