रस - किसी काव्य को पढ़ने, सुनने, लिखने उसका अभिनय देखने से पाठक , श्रोता, लेखक या दर्शक को आनंद की जो आनंद की जो अनुभूति होती है , उसे रस कहते हैं । रस को काव्य की आत्मा कहा जाता है ।
रस के अंग -
रस के 4 अंग होते हैं -
- स्थायी भाव ,
- विभाव ,
- अनुभाव ,
- संचारी भाव ।
स्थायी भाव - सहृदय के हृदय में जो भाव स्थायी रूप से विद्यमान होते हैं , उन्हें स्थायी भाव कहते हैं । इनकी संख्या 10 है ।
प्रमुख स्थायी भाव -
- रति या प्रेम,
- हास या हंसी ,
- शोक या करुणा ,
- रौद्र या क्रोध,
- उत्साह ,
- जुगुप्सा या घृणा ,
- विस्मय या आश्चर्य ,
- भय या डर ,
- वैराग्य या निर्वेद,
- वत्सल या संतान स्नेह ।
विभाव - स्थायी भावों के उत्पन्न होने के कारणों को विभाव कहा जाता है । ये वे कारण होते हैं, जो स्थायी भाव उत्पन्न होने में महत्वपूर्ण होते हैं ।
विभाव 2 प्रकार के होते हैं -
विभाव 2 प्रकार के होते हैं -
- आलंबन विभाव ,
- उद्दीपन विभाव ।
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