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रस

रस - किसी काव्य को पढ़ने, सुनने, लिखने उसका अभिनय देखने से पाठक , श्रोता, लेखक या दर्शक को आनंद की जो आनंद की जो अनुभूति होती है , उसे रस कहते हैं । रस को काव्य की आत्मा कहा जाता है । 


रस के अंग -

रस के 4 अंग होते हैं - 
  1. स्थायी भाव , 
  2. विभाव , 
  3. अनुभाव , 
  4. संचारी भाव । 
स्थायी भाव - सहृदय के हृदय में जो भाव स्थायी रूप से विद्यमान होते हैं , उन्हें स्थायी भाव कहते हैं । इनकी संख्या 10 है । 

प्रमुख स्थायी भाव - 
  1. रति या प्रेम,
  2. हास या हंसी ,
  3. शोक या करुणा ,
  4. रौद्र या क्रोध,
  5. उत्साह ,
  6. जुगुप्सा या घृणा ,
  7. विस्मय या आश्चर्य ,
  8. भय या डर ,
  9. वैराग्य या निर्वेद,
  10. वत्सल या संतान स्नेह ।  

विभाव  - स्थायी  भावों के उत्पन्न होने के कारणों को विभाव कहा जाता है । ये वे कारण होते हैं, जो स्थायी भाव उत्पन्न होने में महत्वपूर्ण होते हैं ।
विभाव 2 प्रकार के होते हैं -

  1. आलंबन विभाव , 
  2. उद्दीपन विभाव ।

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