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जीवन कौशल और शिक्षा

जीवन कौशल और शिक्षा

लेखक ~ शक्ति पटेल 

प्रस्तावना - जीवन की चुनौतियों का सामना करने के लिए विभिन्न प्रकार के कौशलों की आवश्यकता होती है। जीवन कौशलों का अध्ययन कोई नया उपागम नहीं है। विश्व भर में विभिन्न कौशलों का विकास बालकों के कार्यक्रमों का एक अभिन्न हिस्सा है। अपने जीवन को सुलभ बनाने हेतु कौशलों का महत्व सर्वविदित है। आज के छात्र, जीवन की सच्चाइयों तथा व्यावहारिकता से परिचित नहीं हो पाते हैं। इसी को ध्यान में रखते हुए कौशल आधारित शिक्षा लागू करने का कार्य प्रगति पर है। छात्र के द्वारा स्कूली शिक्षा पूरी कर लेने के बाद ऐसा विषम अवसर आता है जब उसे यह निर्धारित करना पड़ता है कि वह अपनी आजीविका तथा समाज में अच्छी प्रस्थिति प्राप्त करने के लिए क्या करे ? यह निश्चय नहीं कर पाता कि उसे क्या करना चाहिए? वह किस ओर प्रवृत्त हो? ऐसे अवसर पर कौशल आधारित शिक्षा की प्रेरणा ही सच्चे पथ प्रदर्शक का कार्य करती है। मनुष्य अपने अन्दर छिपी शक्ति को इस शिक्षा के माध्यम से ही पहचान सकता है। यही कारण है कि कौशलयुक्त शिक्षा का बड़ा ही महत्व है। कौशल से जुड़ी शिक्षा यानी जिसमें छात्रों के संपूर्ण व्यक्तित्व को ध्यान में रखा जाता है। इससे संस्कारित छात्रों, परिवार, अभिभावक और समाज की नींव तैयार होती है। जीवन कौशल शिक्षा को स्कूली पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाकर बेहतर परिणाम प्राप्त किए जा सकते हैं।
 
कौशल के लिए शिक्षा
कौशल वह कला है जो कि व्यक्ति को पूर्णता प्रदान करती है। कौशल में वे सभी कार्य और व्यवहार आते हैं जो कि विद्यार्थी अथवा व्यक्ति के द्वारा सृजनशीलता का गुण पैदा करने से संबन्धित होते हैं। कौशल ही वह गुण हैं जो किसी नवीन उपागम की खोज तथा निर्माण में महत्वपूर्ण होते हैं। इसके अंतर्गत मुख्यतया रचनात्मक विचारधारा, निर्णय लेना, अधिगम  के तरीकों में सुधार आदि आते हैं। इसके माध्यम से ऐसी योग्यता का विकास किया जाता है जिससे कि व्यक्ति स्वयं ही प्रत्यक्ष अनुभव से आगे देखने की क्षमता प्राप्त करता है। यह व्यक्ति के जीवन में नवीनता और लचीलापन लाती है। निर्णय लेने के अंतर्गत अनेक प्रभावकारी कार्यों को करने के पश्चात उपलब्ध विकल्पों में से उपयुक्त विकल्प की पहचान कर उपयोग करने का प्रयास किया जाता है जिससे प्रभावकारी निर्णय लिए जा सकते हैं। समस्या समाधान की प्रक्रिया में निर्णय लेने की प्रक्रिया के पश्चात उपयुक्त विकल्प की खोज कर समस्या समाधान का प्रयास किया जाता है जिससे सकारात्मक परिणाम प्राप्त किए जा सकें। प्रभावकारी संचार कौशल के माध्यम से प्रक्रिया में उपयुक्त तरीके से संचार करना शामिल होता है। इसमें मौखिक तथा गैर-मौखिक दोनों ही माध्यमों से व्यक्ति में अपनी बातें रखने की योग्यता का विकास किया जाता है जिससे व्यक्ति में व्याप्त भय, कुंठा को दूर किया जा सके।
कौशलों का विकास -
अब प्रश्न यह उठता है कि इन कौशलों का विद्यार्थियों में विकास कैसे किया जाय? कुछ सिद्धांतों का विश्लेषण करने से हम पाते हैं कि जीवन कौशल विकसित करने के लिए कुछ बातों को यदि अमल में लाया जाय तो निश्चित रूप से विद्यार्थी कौशल में दक्ष हो सकेंगे और अपने जीवन को आनंदमय तथा सफल व सकारात्मक बना सकेंगे। विद्यार्थी शिक्षक का सकारात्मक संबंध संबंध होना परमावश्यक है। सकारात्मक संबंध का आशय ऐसे सम्बन्धों से है जहां निर्भीक होकर दोनों एक - दूसरे से बातें कह सकें और अपनी जिज्ञासाओं व समस्याओं का समाधान कर सकें। अधिगम के तरीकों में सुधार होना भी जीवन कौशल के लिए महत्वपूर्ण है। शिक्षक को अधिगम के उन तरीकों को अपनाना चाहिए जिससे छात्र प्रेरित हों और  वे विषयों व दक्षताओं को आत्मसात कर सकें। यह क्षमता व्यक्तियों को आविष्कार तथा नवाचार करने में सहायता करती है, जिससे सामाजिक एवं आर्थिक विकास का मार्ग प्रशस्त होता है। राष्ट्रीय उपलब्धि सर्वेक्षण, राज्यस्तरीय लर्निंग उपलब्धि सर्वेक्षण व  शिक्षा की वार्षिक स्थिति रिपोर्ट आदि कुछ वृहत् स्तरीय आकलन हैं जिन्होंने बच्चों में भाषा और गणित सीखने के स्तर की ओर ध्यानाकर्षण किया है। ई - लर्निंग समाधान (जो सबसे बुनियादी शैक्षणिक विषयों पर उच्च गुणवत्तायुक्त शिक्षण सामग्री को एकत्रित करते हैं) ने वास्तव में शिक्षा के क्षेत्र में क्रांति लाने का कार्य किया है। कौशल आधारित सामग्री को लागू  करने का यह समाधान बड़े पैमाने पर कौशलपूर्ण शिक्षा के लेनदेन में निवेश करने वाले हितधारकों को वृहत् रूप से लाभान्वित कर सकता है। यह न केवल युवाओं को अपने स्वयं का प्रभार लेने में सक्षम करेगा बल्कि अपने प्रयासों पर आगे बढ़ने और इस क्षेत्र में विशेषज्ञों के साथ सहयोग करने के अवसर भी प्रदान करेगा।
भारतीय संदर्भ में शिक्षा और कौशल – 
भारत एक विशाल देश है। यहाँ का मानव संसाधन अन्य देशों की तुलना में अधिक विकसित और स्वाबलंबी है। अतः यहाँ जीवन कौशल विकसित करने में शिक्षा की उपादेयता और भी बढ़ जाती है। यहाँ जीवन काल के प्रथम चरण से ही ऐसी शिक्षा अपनाने की आवश्यकता है जो बच्चों के लिये समय प्रबंधन की कुशलता, तकनीकी ज्ञान आदि की व्यवस्था करे। इससे विद्यार्थियों में समझ करने की बुद्धि का अवसर प्राप्त होता है। आलोचनात्मक चिंतन कौशल छात्रों को उपलब्ध सूचना और तथ्यों के आधार पर स्थितियों को समझने और संबोधित करने की अनुमति देता है।
 निष्कर्ष
स्पष्ट है कि अब तकनीकी, स्कूलों की जरूरत बन गई है।  बंधे-बंधाए पाठ्यक्रम की शिक्षा से ऊपर उठकर स्कूली पाठ्यक्रम शिक्षा में भी तकनीकी शिक्षा को शामिल किए जाने जाने की आवश्यकता है। अब जरूरी हो गया है कि बच्चे का आंकलन सिर्फ एक बंधे बंधाए पाठ्यक्रम के आधार पर आंकने के बजाय उसके संपूर्ण व्यक्तित्व एवं तकनीकी ज्ञान को आधार बनाकर किया जाए। छात्र तनाव से दूर होकर तकनीकी का प्रयोग कर उच्च कौशल अर्जित कर सके, ऐसा प्रयास किया जाना चाहिए। शिक्षक द्वारा छात्रोंके समग्र तकनीकी विकास पर ध्यान देना महत्वपूर्ण है।


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