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प्रबंधकीय प्रभावशीलता की अवधारणा और महत्त्व

 प्रबन्धकीय प्रभावशीलता की अवधारणा

(Concept of Managerial Effectiveness)

        सभी प्रबन्धकों का स्पष्ट उत्तरदायित्व प्रभावशील होना होता है। 'प्रभावशीलता' से आशय लक्ष्यों को प्राप्त करने से सम्बन्धित है। प्रबन्धक ही वह व्यक्ति होता है, जो संगठन के मानवीय एवं भौतिक संसाधनों का अनुकूलतम उपयोग करते हुए लक्ष्यों की प्राप्ति को सम्भव बनाता है तथा संस्था के विकास, वृद्धि एवं प्रभावशीलता में सक्रिय भूमिका निभाता है। यही कारण है कि विलयम जे. रेडिन ने प्रबन्धकों को किसी भी राष्ट्र के 'महत्त्वपूर्ण संसाधन' माना है और लिखा है कि सभी संसाधनों का प्रभावी संयोजन करना इनका प्राथमिक उत्तरदायित्व होता है । प्रबन्धक के प्रभावशील होने पर समाज को भी लाभ प्राप्त होता है। रेडिन ने आगे लिखा है कि "यह केवल प्रबन्धक ही है, जो वांछित लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु अपने अधीनस्थ व्यक्तियों को अभिप्रेरित एवं प्रशिक्षित कर सकता है, चाहे वे कितने ही उपयोगी क्यों न हों। हाँ, यदि अधीनस्थ प्रभावी हैं तो प्रभावशीलता का उच्च स्तर प्राप्त करने में अपने उच्चाधिकारियों की मदद कर सकते हैं।" चूँकि प्रबन्धक का मूल कार्य परिणाम उत्पन्न करना है, अतः प्रभावशीलता हासिल करना ही उसका 'केन्द्रीय कार्य' माना जा सकता है।

प्रबन्धकीय प्रभावशीलता क्या है?

(What is Managerial Effectiveness?)

        सामान्य अर्थ में, प्रभावशीलता वह सीमा है, जो एक प्रबन्धक अपनी स्थिति में वांछित प्रदाय (Desired Output) के रूप में प्राप्त करता है। प्रबन्धकीय प्रभावशीलता की अवधारणा में यह 'केन्द्रीय तत्त्व' है। प्रबन्धकीय प्रभावशीलता को प्रायः प्रदाय या परिणामों को प्राप्त करने के सन्दर्भ में ही प्रयुक्त किया जाता है। रेडिन का मत है कि " प्रभावशीलता एक गुण नहीं है, जो कि एक प्रबन्धक एक स्थिति विशेष में लाता है। यह तथ्य तो केवल सफल नेताओं के कुछ विशेष गुणों पर प्रकाश डालता है तथा अपेक्षाकृत कम सफल नेताओं की उपेक्षा करता है।" इसके अनुसार, "एक प्रबन्धक 'क्या करता है' की अपेक्षा 'वह क्या प्राप्त करता है', ज्यादा महत्त्वपूर्ण होता है। इसका कारण यह है कि प्रभावशीलता का सीधा सम्बन्ध प्रदाय या निष्पादन से है, न कि प्रबन्धक के व्यक्तित्व से । "

        जॉन पी. कैम्पबैल ने प्रबन्धकीय प्रभावशीलता को परिभाषित करते हुए लिखा है कि" एक संगठनात्मक इकाई की क्रियाशीलता, जिसके लिए एक प्रबन्धक कुछ उत्तरदायित्व रखता है, के लिए आन्तरिक एवं बाह्य संसाधनों के निर्धारण, आत्मसातकरण तथा उनके उपयोग के लिए की जाने वाली अनुकूलतम प्रबन्धकीय क्रियाओं का समूह ( A Set of Managerial Actions) प्रबन्धकीय प्रभावशीलता को दर्शाता है।"

        प्रत्येक प्रबन्धकीय कार्य के प्रभावशीलता प्रमाप होते हैं, जो लिखित या मौखिक हो सकते हैं। ये वे प्रमाप हैं, जिसके द्वारा प्रबन्धक के कार्य निष्पादन का मूल्यांकन किया जाता है। प्रभावशीलता प्रमाप अपने तार्किक निष्कर्षों को उद्देश्यों द्वारा प्रबन्ध की ओर ले जाता है।

        'जहाँ तक 'प्रबन्धकीय कुशलता' का प्रश्न है, इसे कार्य विवरण के रूप में परिभाषित किया जा सकता है, जो अदाय-प्रदाय अनुपात (Input-Output Ratio) के रूप में व्यक्त किया जा सकता है। यहाँ महत्त्वपूर्ण तथ्य यह है कि आदाय प्रदाय के निम्न होने पर भी कुशलता शत-प्रतिशत हो सकती है। वास्तव में, एक प्रबन्धक या विभाग शत-प्रतिशत कुशल तथा शून्य प्रतिशत प्रभावशील हो सकता है। कुशल प्रबन्धक की तुलना में प्रभावशील प्रबन्धक को आसानी से पहचाना जा सकता है। ऐसा (कुशल) प्रबन्धक -

  • 'सही कार्य करो' के स्थान पर 'कार्य सही करो' पर बल देता है। 
  • सृजनात्मक विकल्प उत्पन्न करने के स्थान पर समस्या समाधान पर बल देता है।
  • संसाधनों के अनुकूलतम उपयोग के स्थान पर उनके सुरक्षित उपयोग पर बल देता है।
  • परिणामों को प्राप्त करने की अपेक्षा कर्त्तव्यों के अनुसरण पर बल देता है।
  • लाभ वृद्धि के स्थान पर निम्न लागतों पर बल देता है।

        जुरगेनसेन ने प्रभावशील तथा कुशल प्रबन्धक के गुणों को निम्नलिखित प्रकार से बताया है-

प्रभावशील बनाम कुशल प्रबन्धक

प्रभावशील प्रबन्धक - कुशल प्रबन्धक

• कृत संकल्प - • सौम्यता

• उत्साही - • स्व-प्रेरित

• उत्पादकशील - • अनुपालनशील

• साफ-सुथरा - • संकोचशील

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