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अतिशयोक्ति , अन्योक्ति और वक्रोक्ति अलंकार

 अतिशयोक्ति , अन्योक्ति और वक्रोक्ति अलंकार


अलंकार क्या है ?

अलंकार का शाब्दिक अर्थ है – आभूषण । जिस प्रकार शरीर की शोभा (सुंदरता) बढ़ाने के लिए आभूषण आदि का प्रयोग किया जाता है, उसी प्रकार अलंकारों से काव्य की सुंदरता में वृद्धि होती है ।  

परिभाषा -

किसी काव्य की शोभा / सुंदरता में वृद्धि करने वाले साधन / उपकरण को अलंकार कहते हैं ।

आचार्य दंडी के शब्दों में – “काव्य शोभाकरान् धर्मान अलंकारान् प्रचक्षते” अर्थात काव्य के शोभाकारक धर्म (गुण) को अलंकार कहते हैं ।

अलंकार के प्रकार –

शब्दालंकार – शब्दों के द्वारा अलंकार

अर्थालंकार – अर्थ के द्वारा अलंकार

उभयालंकार – शब्द और अर्थ के द्वारा अलंकार

अतिशयोक्ति  अलंकार - अतिशय + उक्ति


बहुत अधिक बढ़ा - चढ़ाकर बात  

 

बहुत        कथन/ बात

अधिक       

परिभाषा –

जहाँ किसी बात का वर्णन बहुत अधिक बढ़ा - चढ़ाकर किया जाए, वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है।

दूसरे शब्दों में, जहाँ लोक सीमा का अतिक्रमण करके किसी वस्तु या विषय का वर्णन बढ़ा - चढ़ाकर किया जाए, वहाँ अतिशयोक्ति अलंकार होता है ।

उदाहरण –

पड़ी अचानक नदी अपार , घोड़ा कैसे उतरे पार ।

राणा ने सोचा इस पार , तब तक चेतक था उस पार ॥

महाराणा प्रताप के घोड़े का अति तीव्र गति से दौड़ना लोक सीमा का उल्लंघन करता है । अतः यहाँ अतिशयोक्ति अलंकार है ।

हनूमान की पूंछ में, लग ना पाई आग ।

लंका सारी जल गई , गये निसाचर भाग ॥

यहाँ हनुमान जी पूंछ में आग लगने से पहले ही लंका में आग लगना लोक सीमा का उल्लंघन करता है । अतः यहाँ भी अतिशयोक्ति अलंकार है ।

अन्योक्ति  अलंकार

 

अन्य + उक्ति

                  अन्य वस्तु / व्यक्ति के लिए बात / प्रत्यक्ष अर्थ के अतिरिक्त भिन्न अर्थ

अन्य वस्तु/    कथन/ बात व्यक्ति       

परिभाषा –

जहाँ प्रस्तुत के माध्यम से अप्रस्तुत का अर्थ ध्वनित हो,  वहाँ अन्योक्ति अलंकार होता है ।

उदाहरण –

माली आवत देखकर, कलियन करी पुकारि ।

फूले फूले चुन लिए, काल्हि हमारी बारि ॥

इस उदाहरण में माली काल का प्रतीक है , जो फूलों को (वृद्धों को) निर्धारित समय पर तोड़ लेता है । जो आज कली (किशोरावस्था) के रूप में हैं उन्हें भी माली रूपी काल किसी दिन तोड़ लेगा ।

उदय हुआ पश्चिम से देखो , कैसा ये सूरज अलबेला ॥

साथी इसके सभी हो लिए , रहा नहीं अब यही अकेला ॥

 

वक्रोक्ति  अलंकार

वक्र + उक्ति


                  अन्य वस्तु / व्यक्ति के लिए बात / प्रत्यक्ष अर्थ के अतिरिक्त भिन्न अर्थ

टेढ़ा/टेढ़ी    कथन/ बात      

परिभाषा –

जहाँ कथित का ध्वनि द्वारा दूसरा अर्थ ग्रहण किया जाए वहाँ वक्रोक्ति अलंकार होता है ।

उदाहरण –

मैं सुकुमारि नाथ वन जोगु ।

तुमहिं उचित तप , मोकहूँ भोगू ॥

यहाँ राम जी के प्रति सीता जी का सामान्य कथन है, कि मैं सुकुमारी हूँ और आप वन के योग्य हैं । आपको वन जाना चाहिए तथा मुझे घर पर रहना चाहिए । पर यह सामान्य उक्ति न होकर विशिष्ट या विचित्र उक्ति है। वस्तुतः सीता के कथन से अन्य भाव ध्वनित होता है । सीता जी इसके विपरीत स्वयं भी जाना चाहती हैं ।

श्लेषमूला वक्रोक्ति और काकुमूला वक्रोक्ति –

श्लेषमूला वक्रोक्ति – इसमें एक शब्द के अधिक अर्थ निकलने के कारण इस शब्द का अर्थ भिन्न समझ लिया जाता है ।

एक कबूतर देख हाथ में पूछा कहाँ अपर है ?

उसने कहा अपर कैसा ? वह उड़ गया सपर है ॥  (गुरूभक्त सिंह)

यहाँ पूर्वार्द्ध में जहाँगीर ने दूसरे कबूतर के बारे में पूछने के लिए अपर का प्रयोग किया है जबकि उत्तरार्द्ध में नूरजहाँ ने अपर का बिना पंख वाला समझ कर उत्तर दिया है ।

कौन द्वार पर ?

हरि में राधे ।

क्या वानर का काम यहाँ ??

काकुमूला वक्रोक्ति – इसमें ध्वनि विकार , आवाज में परिवर्तन या शब्द अथवा वाक्य बोलने की लय के कारण उसका अन्य अर्थ निकाल लिया जाता है ।

·        तुम खेलो तो । - इसमें खेलने के लिए बोला जा रहा है ।

·        तुम खेलो तो ? – इसमें खेलने के लिए मना किया जा रहा है ।

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