विद्यार्थीको सुख कहाँ ?
विद्यारत्नं महधनम् ।
विद्यारूपी रत्न सब से बडा धन है ।
विद्या ददाति विनयम् ।
विद्या से मानव विनयी बनता है ।
सद्विद्या यदि का चिन्ता वराकोदरपूरणे ।
यदि सद्विद्या पास हो तो बेचारे उदर के भरण-पोषण की चिंता कहाँ से हो ?
विद्या रूपं कुरूपाणाम् ।
कुरूप मानव के लिए विद्या हि रूप है ।
विद्या मित्रं प्रवासेषु ।
प्रवास में विद्या मित्र की कमी पूरी करती है ।
किं किं न साधयति कल्पलतेव विद्या ।
कल्पलता की तरह विद्या कौन सा काम नहीं सिध्ध कर देती ?
सा विद्या या विमुक्तये ।
मनुष्य को मुक्ति दिलाये वही विद्या है ।
विद्या योगेन रक्ष्यते ।
विद्या का रक्षण अभ्यास से होता है ।
विद्या का रक्षण अभ्यास से होता है ।
अशुश्रूषा त्वरा श्र्लाधा विद्यायाः शत्रवस्त्रयः ।
गुरुकी शुश्रूषा न करना, पढने में शीघ्र न होना और खुद की प्रशंसा करना – ये तीन विद्या के शत्रु है ।
गुरुकी शुश्रूषा न करना, पढने में शीघ्र न होना और खुद की प्रशंसा करना – ये तीन विद्या के शत्रु है ।
ब्राह्मणस्य अश्रुतं मलम् ।
श्रुति का ज्ञान न होना ब्राह्मण का दोष है ।
श्रुति का ज्ञान न होना ब्राह्मण का दोष है ।
मन्त्रज्येष्ठा द्विजातयः ।
वेदमंत्र के ज्ञान की वजह से ब्राह्मण श्रेष्ठ है ।
वेदमंत्र के ज्ञान की वजह से ब्राह्मण श्रेष्ठ है ।
यस्यागनः केवलजीविकायै
तं ज्ञानपण्यं वणिजं वदन्ति ।
जो विद्वान का ज्ञान केवल उपजीविका के लिए हो उसे ज्ञान बेचनेवाला व्यापारी कहते है ।
तं ज्ञानपण्यं वणिजं वदन्ति ।
जो विद्वान का ज्ञान केवल उपजीविका के लिए हो उसे ज्ञान बेचनेवाला व्यापारी कहते है ।
गुरुशुश्रूषया ज्ञानम् । गुरु की शुश्रूषा करनेसे ज्ञान प्राप्त होता है । आज्ञा गुरुणां ह्यविचारणीया । गुरु की आज्ञा अविचारणीय होती है । ब्रूयुः स्निग्धस्य शिष्यस्य गुरवो गुह्यमप्युत । स्नेहपात्र शिष्य को गुरु गोपनीय ज्ञान भी बताते हैं । तीर्थानां गुरवस्तीर्थम् । गुरु तीर्थों के भी तीर्थ है । आचार्य देवो भव । आचार्य को देवसमान मान ।
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