यूक्लिड की पाँच अभिधारणाएँ –
अभिधारणा 1 –
एक बिन्दु से एक अन्य बिन्दु तक एक सीधी रेखा खींची जा सकती है ।
यह अभिधारणा हमें इस बात का ज्ञान कराती है, कि दो भिन्न बिन्दुओं से होकर कम से कम एक रेखा अवश्य खींची जा सकती है।
परंतु इससे यह ज्ञात नहीं होता, कि ऐसी एक से अधिक सीधी रेखाएँ नहीं खींची जा सकती हैं।
यूक्लिड ने इस बारे में बार - बार यही कल्पना की है, कि दो भिन्न बिंदुओं में से एक अद्वितीय रेखा ही खींची जा सकती है।
यूक्लिड का यह कथन अभिगृहीत के रूप में इस प्रकार है -
अभिगृहीत -
"दिए हुए दो भिन्न बिन्दुओं से होकर एक अद्वितीय रेखा खींची जा सकती है ।"
इसे अभिगृहीत क्यों माना गया ? क्योंकि यह स्वयं सिद्ध है।
"बिन्दु P से ऎसी केवल एक ही रेखा खींची जा सकती है, जो बिन्दु Q से भी होकर जाती है। इसी प्रकार बिन्दु Q से भी केवल एक ही ऎसी रेखा खींची जा सकती है, जो बिन्दु P से भी होकर जाती है।"
इस प्रकार उपरोक्त कथन एक स्वयंसिद्ध कथन है अर्थात हमें इसे सिद्ध करने की आवश्यकता नहीं है।इसीलिए यह कथन एक अभिगृहीत है।
अभिधारणा 2 –
एक सांत रेखा को अनिश्चित रूप से बढ़ाया जा सकता है ।
जिसे हम वर्तमान में रेखाखंड कहते हैं, उसे यूक्लिड ने सांत रेखा कहा था ।
अतः वर्तमान की भाषा में, एक रेखाखण्ड को दोनों ओर विस्तृत करके एक रेखा बनाई जा सकती है ।
अभिधारणा 3 –
किसी को केंद्र मानकर और किसी त्रिज्या से एक वृत्त खींचा जा सकता है ।
अभिधारणा 4 –
सभी समकोण एक दूसरे के बराबर होते हैं ।
अभिधारणा 5 –
यदि एक सीधी रेखा दो सीधी रेखाओं पर गिरकर अपने एक ही ओर दो अन्तः कोण इस प्रकार बनाए कि इन दोनों कोणों का योग मिलकर दो समकोणों से कम हो, तो वे दोनों सीधी रेखाएँ अनिश्चित रूप से बढ़ाए जाने पर उसी ओर मिलती हैं जिस ओर यह योग दो समकोण से कम होता है ।
ये अभिधारणाएँ इतनी इतनी सरल और स्पष्ट हैं कि इन्हें स्वयं सिद्ध सत्य के रूप में मान लिया जाता है , परंतु इन्हें सिद्ध करना संभव नहीं है । इसीलिए इन कथनों को बिना उपपत्ति के स्वीकृत कर लिया गया है । आजकल अभिधारणा और अभिगृहीत दोनों पदों को एक दूसरे के लिए एक ही अर्थ में प्रयोग किया जाता है । वास्तव में अभिधारणा एक क्रिया (verb) है ।
जब हम कहते हैं, कि आइए अभिधारणा करें, तो इसका अर्थ है, कि ‘आइए विश्व में प्रेक्षित परिघटनाओं के आधार पर कुछ कथन कहें। ’
इनकी सत्यता की जांच बाद में की जाती है । यदि अभिधारणाओं की सत्यता का परीक्षण कर लिया जाता है , तब ये प्रमेय कहलाती हैं।
यूक्लिड ने अपनी अभिधारणाएँ और अभिगृहीतों के बाद, इनका प्रयोग अन्य परिणामों को सिद्ध करने में किया । इसके पश्चात इन परिणामों का प्रयोग करके उन्होंने तर्कण द्वारा कुछ और परिणामों को सिद्ध किया । जिन कथनों को सिद्ध किया गया , वे साध्य या प्रमेय कहलाती हैं ।
यूक्लिड ने अपनी परिभाषाओं , अभिगृहीतों , अभिधारणाओं और पहले सिद्ध किए गए प्रमेयों का प्रयोग करके एक तार्किक श्रंखला में 465 साध्य (प्रमेय ) निगमित किए ।



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