स्वतंत्रता की पूर्व संध्या पर भारतीय अर्थव्यवस्था -
"भारत हमारे साम्राज्य की धुरी है। यदि हमारे साम्राज्य का कोई राज्य अलग हो जाता है तो हम जीवित रह सकते हैं, यदि हम भारत को खो देते हैं तो हमारे साम्राज्य का सूर्य अस्त हो जायेगा।" —
यह कथन विक्टर एलेक्जेंडर वूस (1894 में ब्रिटिश इंडिया के वायसराय) का है।
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* औपनिवेशिक शासन का मुख्य उद्देश्य इंग्लैंड में तेजी से विकसित हो रहे औद्योगिक आधार के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था को केवल एक कच्चा माल प्रदायक तक ही सीमित रखना था। इससे भारत के आर्थिक शोषण को बल मिला ।
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प्रश्न - भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन का मुख्य उद्देश्य क्या था?
उत्तर - भारत में ब्रिटिश शासन का मुख्य उद्देश्य ब्रिटेन में तेजी से विकसित हो रहे औद्योगिक आधार के लिए भारतीय अर्थव्यवस्था को केवल एक कच्चा माल प्रदायक तक ही सीमित रखना और ब्रिटिश अर्थव्यवस्था का विकास करना था । ब्रिटिश शासन का मूल स्वरूप भारत के शोषक था ।
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प्रश्न - उपनिवेश (Colony) से क्या आशय है?
- इसमें एक देश 'शासक' (मालिक) होता है और दूसरा देश 'शासित' (गुलाम) होता है।
- शक्तिशाली देश, उपनिवेश बनाए गए देश के प्राकृतिक संसाधनों (जैसे- खनिज, वन, खेती) का उपयोग अपने फायदे के लिए करता है।
- राजनीतिक नियंत्रण: उपनिवेश देश के कानून और नियम, शासक देश द्वारा बनाए और लागू किए जाते हैं।
Facts -
* व्यापार की दृष्टि से अंग्रेज़ सन् 1600 में भारत आये । उस समय इंग्लैंड की ईस्ट इंडिया कंपनी का गठन हुआ और उसे सरकार ने भारत के साथ व्यापार करने का अधिकार दे दिया ।
* सन् 1757 में प्लासी की लड़ाई के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल पर अपना प्रभुत्व जमा लिया । अंग्रेज़ शासन का प्रारम्भ वास्तव में यहीं से माना जाता है।
* सन् 1858 में राजनीतिक सत्ता ब्रिटिश सरकार के हाथों में चली गई और भारत ब्रिटेन का उपनिवेश (Colony) माना जाने लगा ।
प्रश्न - ब्रिटिश शासन का भारतीय अर्थव्यवस्था पर क्या प्रभाव पड़ा?
अथवा
ब्रिटिश शासन के भारतीय अर्थव्यवस्था पर सकारात्मक (रचनात्मक) और नकारात्मक (विनाशक) प्रभाव को समझाइए ।
उत्तर - आर्थिक गतिहीनता ऐसी स्थिति है, जब राष्ट्रीय आय तथा प्रति व्यक्ति आय या तो स्थिर रहती है या कम हो रही होती है।
- परंपरागत कृषि तकनीक
- कमजोर औद्योगिक ढांचा
- प्राकृतिक संसाधनों के प्रयोग के बारे में जानकारी का अभाव
- तकनीकी जानकारी का अभाव
- जनसंख्या वृद्धि
- शिक्षा का अभाव
- ब्रिटिश सरकार की औपनिवेशिक नीतियाँ
1. भारतीय हस्तशिल्प और उद्योगों का पतन - भारत के हाथ से बने महीन कपड़े और हस्तशिल्प ब्रिटेन की फैक्ट्रियों में बने सस्ते माल का मुकाबला नहीं कर सके। ढाका की मलमल और सूरत का कपड़ा उद्योग बर्बाद हो गया। भारत, जो पहले दुनिया को कपड़ा निर्यात करता था, अब कपड़े का आयातक बन गया।
2. कृषि का वाणिज्यीकरण - ब्रिटिश फैक्ट्रियों को कच्चे माल की जरूरत थी, इसलिए उन्होंने भारतीय किसानों को खाद्य फसलों (गेहूं, चावल) की जगह नगदी फसलें उगाने पर मजबूर किया। किसानों को नील , कपास , जूट और चाय उगाने के लिए बाध्य किया गया।
3. धन का निष्कासन - मुक्त व्यापार की आड़ में भारत का पैसा और संसाधन लगातार ब्रिटेन भेजा गया। भारत से कच्चा माल सस्ती दरों पर खरीदा जाता और तैयार माल महंगी दरों पर वापस भारत को बेचा जाता। इस व्यापार का पूरा मुनाफा ब्रिटेन चला जाता था, और भारत को बदले में कोई आर्थिक विकास नहीं मिलता था।
5. रेलवे का उपयोग शोषण के लिए - अंग्रेजों ने रेलवे का विकास किया, लेकिन उसका उद्देश्य भी मुक्त व्यापार को सुगम बनाना था। रेलवे के जरिए ब्रिटेन का सस्ता सामान भारत के दूर-दराज के गांवों तक पहुँचाया गया और गांवों से कच्चा माल बंदरगाहों तक लाया गया, जिससे भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था की आत्मनिर्भरता खत्म हो गई।
📑 परिवहन (Transport)
मनुष्यों अथवा वस्तुओं को एक स्थान से दूसरे स्थान पर लाने-ले जाने को परिवहन कहते हैं।
परिवहन के साधन -
परिवहन के साधनों से आशय उन साधनों से है जिनके द्वारा मनुष्य तथा वस्तुओं को एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचाया जाता है। परिवहन के अन्तर्गत रेल, सड़क, जल तथा वायु परिवहन आते हैं। परिवहन के साधन साइकिल, बस, ट्रक, रेलगाड़ी, जहाज़, बैलगाड़ी आदि हैं। परिवहन आधारभूत संरचनाओं का महत्वपूर्ण अंग होता है।
परिवहन का महत्व (Importance of Transport)
किसी देश के जनजीवन और अर्थव्यवस्था का अत्यधिक महत्व है। अर्थव्यवस्था के प्रत्येक क्षेत्र: जैसे-कृषि, उद्योग - व्यापार आदि में परिवहन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। परिवहन के महत्व को हम निम्नानुसार समझ सकते हैं -
(अ) आर्थिक महत्व - परिवहन के आर्थिक महत्व निम्नलिखित हैं-
(1) संसाधनों का उपयोग - परिवहन के द्वारा ही संसाधनों का कुशलतम उपयोग सम्भव होता है। उद्योगों द्वारा प्रयुक्त कच्चे माल को औद्योगिक केन्द्रों तक ले जाने और वहाँ निर्मित माल को उपभोक्ताओं तक पहुँचाने के लिए परिवहन के साधन महत्वपूर्ण होते हैं।
(2) बाज़ार का विस्तार - परिवहन के द्वारा बाज़ार का विस्तार करने में मदद मिलती है। परिवहन सुविधाओं के कारण वस्तु का अधिक उत्पादन एवं उन्हें दूरस्थ क्षेत्र के उपभोक्ताओं तक पहुँचाना सम्भव होता है। जो वस्तुएँ शीघ्र नष्ट होने वाली हैं उन्हें परिवहन के साधनों की मदद से दूरी पर स्थित बाज़ारों तक ले जाया जा सकता है।
(3) श्रम की गतिशीलता - परिवहन ने श्रम की गतिशीलता को बढ़ाया है। परिवहन के तीव्रगामी साधनों के कारण श्रमिक दूर के क्षेत्रों में जाकर काम करने को तैयार हो जाते हैं। श्रम की गतिशीलता में वृद्धि से उत्पादन हेतु कुशल श्रम की आपूर्ति हो जाती है। इससे श्रम की कार्यक्षमता भी बढ़ती है।
(4) औद्योगीकरण - परिवहन जहाँ कच्चा माल उद्योगों तक पहुँचाकर एवं निर्मित माल उपभोक्ताओं को पहुँचाकर औद्योगीकरण में मदद करता है, वहीं परिवहन का विकास स्वयं भी औद्योगीकरण में सहायक है। परिवहन के विकास होने पर मोटर, रेल के इंजन और डिब्बे, पानी के जहाज़ आदि उद्योगों की स्थापना होती है। इससे औद्योगीकरण को बढ़ावा मिलता है।
(5) कृषि का विकास - परिवहन का कृषि के विकास में महत्वपूर्ण योगदान है। अच्छे बीज, खाद, यन्त्र आदि खेतों तक पहुँचाने एवं उपज को मण्डी तक ले जाने में परिवहन की महत्वपूर्ण भूमिका है। अच्छे साधन उपलब्ध होने पर कृषि उत्पादन बढ़ता है। मण्डी में सही मूल्य मिलने के लिए किसान अधिक उत्पादन करने के लिए प्रोत्साहित होता है।
(6) उपभोक्ताओं की सन्तुष्टि - परिवहन के साधनों के विकास होने पर उपभोक्ता अपनी पसन्द की वस्तु का उपभोग कर सकता है। वह देश एवं विदेश कहीं से भी वस्तु मँगवा सकता है।
(7) कीमतों में स्थिरता - देश में कीमतों को स्थिर बनाये रखने में परिवहन की महत्वपूर्ण भूमिका है। एक स्थान पर वस्तु की आपूर्ति कम होने पर जब कीमत बढ़ती है तब दूसरे स्थान से वस्तु लाकर बढ़ती कीमत पर रोक लगायी जा सकती है। इसी प्रकार, देश में किसी वस्तु की कमी होने पर उसे दूसरे देशों से आयात किया जा सकता है। इस प्रकार कीमतों को स्थिर रखा जा सकता है।
(8) तीव्र आर्थिक विकास - किसी देश में जितनी कुशल एवं विकसित परिवहन प्रणाली उपलब्ध होगी साथ ही वहाँ तीव्र एवं सन्तुलित आर्थिक विकास होगा। विकसित परिवहन के अभाव में आर्थिक विकास की टकर ही नहीं की जा सकती है।
(ब) सामाजिक महत्व - परिवहन का सामाजिक महत्व अग्रलिखित है-
(1) जीवन स्तर में वृद्धि - परिवहन के साधनों में वृद्धि के परिणामस्वरूप ही मनुष्य अपनी आवश्यकता की वस्तु प्राप्त करने में सक्षम हो सका है। श्रेष्ठ किस्म की वस्तु एवं अधिकाधिक आवश्यकताओं की सन्तुष्टि परिवहन के विकास के कारण ही सम्भव हुई है। इससे मनुष्य का जीवन स्तर पूर्व की तुलना में बढ़ गया है।
(2) ज्ञान में वृद्धि - परिवहन के विकास के कारण ही मनुष्य एक स्थान से दूसरे स्थान पर जा सका। इससे जहाँ उसका दृष्टिकोण व्यापक हुआ वहाँ ज्ञान में भी वृद्धि हुई।
(3) अन्य लाभ - परिवहन के कारण हमारा दूसरी जातियों, विभिन्न विचारों एवं विदेशों से सम्पर्क सम्भव हुआ। इससे विश्व-बन्धुत्व को बढ़ावा मिला। पर्यटन, धार्मिक यात्राओं, शैक्षिक भ्रमण आदि में वृद्धि हुई।
(स) राजनीतिक महत्व - परिवहन का राजनीतिक महत्व निम्नलिखित है-
(1) देश की सुरक्षा एवं शान्ति - देश की सुरक्षा एवं शान्ति में परिवहन का विशेष महत्व है। सीमाओं पर सैनिकों, हथियार, खाद्य सामग्री आदि को पहुँचाने का कार्य परिवहन द्वारा ही सम्भव होता है। देश में कहीं भी अशान्ति होने पर वहाँ तुरन्त सुरक्षा बलों को ले जाकर शान्ति स्थापित करने में भी परिवहन महत्वपूर्ण है।
(2) राजस्व की प्राप्ति - सरकार को परिवहन के साधनों से विभिन्न करों के रूप में राजस्व की प्राप्ति होती है।
(3) रोजगार में वृद्धि - परिवहन के साधनों का विकास होने पर दूसरे क्षेत्रों में जाकर काम करना सम्भव होता है। इससे बेरोज़गार लोगों को काम उपलब्ध होने लगता है।
परिवहन से सम्बन्धित महत्वपूर्ण तथ्य -
परिवहन के अन्तर्गत रेल, सड़क, जहाज़रानी एवं वायु परिवहन आते हैं। अंग्रेजी शासन ने भारत में परिवहन का विकास अपनी व्यापारिक एवं प्रशासनिक सुविधाओं की दृष्टि से किया था। स्वतन्त्रता प्राप्ति के समय भारत में विभिन्न परिवहन सेवाओं का विकास निम्न प्रकार था-
(2) सड़क परिवहन - मेगस्थनीज तथा फ़ाह्यान आदि विदेशी यात्रियों के लेखों से भी पता चलता है कि प्राचीन समय में भारत की सड़कें बहुत अच्छी थीं। शेरशाह सूरी और अकबर का नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है, ब्रिटिश काल में सड़कों के विकास की ओर कोई विशेष ध्यान नहीं दिया गया।
सन् 1927 में एम. आर. जयकर की अध्यक्षता में एक सड़क समिति की स्थापना की गयी।
समिति को रिपोर्ट को ध्यान में रखकर सन् 1930 में केन्द्रीय सड़क संगठन तथा सन् 1935 में परिवहन सलाहकार परिषद की स्थापना की गयी।
सन् 1943 में नागपुर में केन्द्रीय व प्रान्तीय सरकारों के इंजीनियरों का एक सम्मेलन हुआ, जिसमें 10 वर्षीय सड़क विकास की एक योजना बनायी गयी जिसे नागपुर योजना कहते हैं।
नागपुर योजना का संबंध सड़क निर्माण से है।
इस योजना में सड़कों को चार वर्गों में रखा गया- राष्ट्रीय सड़कें, प्रान्तीय सड़कें, ज़िला सड़कें तथा ग्राम सड़कें। सन् 1947 में नागपुर योजना पर कार्य प्रारम्भ हुआ।
(1) रेल परिवहन -
अंग्रेज़ी सरकार ने भारत में रेलों का निर्माण इस उद्देश्य से किया था कि वह ब्रिटेन के उद्योगों के कच्चे माल और बाज़ार सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति कर सके। भारत में रेलवे का प्रारम्भ 16 अप्रैल, 1853 में हुआ,
जबकि पहली रेलगाड़ी मुम्बई से थाणे तक 34 किलोमीटर चली।
स्वतन्त्रता के बाद सन् 1950 में रेलों का पूर्ण राष्ट्रीयकरण कर दिया गया।
(3) जल परिवहन -
अंग्रेज़ी शासन में सामुद्रिक और तटीय परिवहन विदेशी कम्पनियों के हाथों में था।
(4) वायु परिवहन -
भारत में वायु परिवहन के विकास का प्रारम्भ 1927 में हुआ, जबकि नागरिक विमान-परिवहन विभाग की स्थापना की गयी।
सन् 1932 में टाटा बन्धुओं ने कराची व मद्रास के बीच स्वदेशी सेवा प्रारम्भ की।
सन् 1948 में सरकार ने विमान परिवहन नीति की घोषणा की।
📞 संचार या सन्देश वाहन (Communication)
संचार आधारभूत संरचना का महत्वपूर्ण भाग होता है। संचार के विकास पर देश का औद्योगिक, व्यापारिक एवं आर्थिक विकास निर्भर होता है।
संचार में डाक सेवाएँ तथा दूर संचार प्रमुख रूप से शामिल होते हैं।
ब्रिटिश शासन में प्रारम्भ के समय डाक सेवाओं का उपयोग केवल सरकारी कार्यों के लिए होता था।
सामान्य व्यक्ति के लिए डाक सेवाओं का प्रारम्भ सन् 1837 से हुआ।
कराची में सन् 1852 में पहला डाक टिकट जारी किया गया जो केवल सिन्ध सूबे में वैध था।
सन् 1898 इडिपेएन पोस्ट ऑफिस एक्ट बनाया गया। भारत में डाक सेवाएँ इसी एक्ट के अन्तर्गत निर्धारित होती हैं।
भारत में तार सेवा सन् 1851 में प्रारम्भ हुई। सर्वप्रथम यह कलकत्ता से डायमण्ड हार्बर तक प्रारम्भ की गई।
भारत में टेलीफोन सेवा 1881 में प्रारम्भ हुई।
अंग्रेज़ी शासन की स्थापना से पूर्व भारत की अपनी स्वतंत्र अर्थव्यवस्था थी।
औपनिवेशिक शासकों द्वारा रची गई आर्थिक नीतियों का ध्येय भारत का आर्थिक विकास नहीं, बल्कि अपने मूल देश के आर्थिक हितों का संरक्षण और संवर्धन ही था।
अंग्रेजों ने कभी भारत की राष्ट्रीय तथा प्रतिव्यक्ति आय का आकलन करने का ईमानदारी से प्रयास नहीं किया।
1.3 कृषि क्षेत्रक
ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के अंतर्गत भारत मूलतः एक कृषि अर्थव्यवस्था ही बना रहा। देश की लगभग 85 प्रतिशत जनसंख्या गाँवों में बसी थी और कृषि से ही अपनी रोजी-रोटी कमा रही थी।
बॉक्स 1.2: पूर्व ब्रिटिश काल में कृषि सत्रहवीं शताब्दी में भारत आए फ्रांसीसी यात्री बर्नीयर ने लिखा: "यह क्षेत्र (बंगाल) मिश्र देश से कहीं अधिक समृद्ध है। यहाँ से सूती-रेशमी वस्त्र, चावल, शक्कर और मक्खन का प्रचुर मात्रा में निर्यात होता है... यहाँ अपने आंतरिक उपभोग के लिए भी गेहूँ, सब्जियाँ, अनाज, मुर्गे/मुर्गियाँ, बत्तख आदि का भरपूर उत्पादन होता है।"
कृषि क्षेत्रक में गतिहीनता और उत्पादकता में कमी आती रही। इसका मुख्य कारण औपनिवेशिक शासन द्वारा लागू की गई भू-व्यवस्था प्रणालियाँ थीं, विशेषकर जमींदारी व्यवस्था।
कृषि की ही भाँति, भारत एक सुदृढ़ औद्योगिक आधार का विकास भी नहीं कर पाया। देश की विश्व प्रसिद्ध शिल्पकलाओं का पतन हो गया, किंतु उसका स्थान लेने वाले किसी आधुनिक औद्योगिक आधार की रचना नहीं होने दी गई।
वि-औद्योगीकरण का दोहरा उद्देश्य:
भारत को इंग्लैंड के आधुनिक उद्योगों के लिए कच्चे माल का निर्यातक बनाना।
भारत को उन उद्योगों के उत्पादन के लिए एक विशाल बाज़ार बनाना।
उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में कुछ आधुनिक उद्योगों की स्थापना हुई, जो मुख्य रूप से सूती वस्त्र (पश्चिमी क्षेत्र - महाराष्ट्र, गुजरात) और पटसन उद्योगों (बंगाल) तक सीमित थी।
1.5 विदेशी व्यापार
प्राचीन समय से भारत एक महत्त्वपूर्ण व्यापारिक देश रहा है, लेकिन औपनिवेशिक नीतियों के कारण भारत कच्चे उत्पाद (रेशम, कपास, ऊन, चीनी, नील, पटसन) का निर्यातक और अंतिम उपभोक्ता वस्तुओं (सूती, रेशमी, ऊनी वस्त्र, हल्की मशीनें) का आयातक बनकर रह गया।
इंग्लैंड ने भारत के आयात-निर्यात पर एकाधिकार जमाए रखा। भारत का आधे से अधिक व्यापार केवल इंग्लैंड तक सीमित था।
बॉक्स 1.3: स्वेज नहर वर्ष 1869 में स्वेज नहर के खुलने से परिवहन लागतें बहुत कम हो गईं और भारतीय बाजार तक पहुँचना सुगम हो गया। यह भूमध्य सागर को लाल सागर से जोड़ता है।
लाँकि निर्यात अधिशेष था, लेकिन इसका देश में सोने-चाँदी के प्रवाह पर कोई प्रभाव नहीं पड़ा। इसका प्रयोग अंग्रेजों द्वारा भारत पर शासन करने, युद्धों पर व्यय और अदृश्य मदों के आयात पर किया गया, जिसे 'संपदा का दोहन' कहा जाता है।
1.6 जनांकिकीय परिस्थिति
ब्रिटिश भारत की जनसंख्या के विस्तृत ब्यौरे सबसे पहले 1881 की जनगणना में एकत्रित किए गए।
साक्षरता दर: 16% से कम (महिला साक्षरता केवल 7%)।
जन-स्वास्थ्य: जल और वायु जनित रोगों का प्रकोप था।
शिशु मृत्यु दर: 218 प्रति हजार (वर्तमान में 28 के मुकाबले)।
जीवन प्रत्याशा: केवल 32 वर्ष (वर्तमान में 69 वर्ष)।
अत्यधिक गरीबी व्याप्त थी।
1.7 व्यावसायिक संरचना
औपनिवेशिक काल में कृषि सबसे बड़ा व्यवसाय था, जिसमें 70-75% जनसंख्या लगी थी। विनिर्माण में 10% तथा सेवा क्षेत्रकों में 15-20% लोग कार्यरत थे।
1.8 आधारिक संरचना
औपनिवेशिक शासन में रेलों, पत्तनों, जल परिवहन व डाक-तार का विकास हुआ, लेकिन इसका उद्देश्य जनसामान्य को सुविधा देना नहीं, बल्कि औपनिवेशिक हितों को साधना था।
सड़कें: सेनाओं के आवागमन और कच्चे माल को रेलवे स्टेशन तक पहुँचाने के लिए बनाई गईं।
रेलवे: अंग्रेजों ने 1850 में रेलों का आरंभ किया। इससे लंबी यात्राएँ संभव हुईं और कृषि के व्यावसायीकरण को बढ़ावा मिला, लेकिन इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था की आत्मनिर्भरता पर विपरीत प्रभाव पड़ा।
जलमार्ग: आंतरिक जलमार्ग (जैसे उड़ीसा की तटवर्ती नहर) अलाभकारी सिद्ध हुए और रेलमार्ग से स्पर्धा नहीं कर पाए।
संचार: मँहगी तार व्यवस्था कानून व्यवस्था बनाए रखने के लिए थी।
1.9 निष्कर्ष
स्वतंत्रता प्राप्ति तक, 200 वर्षों के विदेशी शासन के परिणामस्वरूप भारतीय अर्थव्यवस्था पिछड़ी हुई थी। कृषि क्षेत्रक श्रम-अधिशेष और कम उत्पादकता से जूझ रहा था। औद्योगिक क्षेत्रक को आधुनिकीकरण और सार्वजनिक निवेश की आवश्यकता थी। व्यापक गरीबी और बेरोजगारी जैसी सामाजिक और आर्थिक चुनौतियाँ देश के सामने थीं।
अभ्यास (प्रश्न)
भारत में औपनिवेशिक शासन की आर्थिक नीतियों का केंद्र बिंदु क्या था?
औपनिवेशिक काल में भारत की राष्ट्रीय आय का आकलन करने वाले प्रमुख अर्थशास्त्रियों के नाम बताइए।
औपनिवेशिक शासनकाल में कृषि की गतिहीनता के मुख्य कारण क्या थे?
स्वतंत्रता के समय देश में कार्य कर रहे कुछ आधुनिक उद्योगों के नाम बताइए।
स्वतंत्रता पूर्व अंग्रेज़ों द्वारा भारत के व्यवस्थित वि-औद्योगीकरण के दोहरे ध्येय क्या थे?
अंग्रेज़ी शासन के दौरान भारत के परंपरागत हस्तकला उद्योगों का विनाश हुआ। क्या आप इस विचार से सहमत हैं?
भारत में आधारिक सरंचना विकास की नीतियों से अंग्रेज अपने क्या उद्देश्य पूरा करना चाहते थे?
ब्रिटिश औपनिवेशिक प्रशासन द्वारा अपनाई गई औद्योगिक नीतियों की कमियों की आलोचनात्मक विवेचना करें।
औपनिवेशिक काल में भारतीय संपत्ति के निष्कासन से आप क्या समझते हैं?
जनांकिकीय संक्रमण के प्रथम से द्वितीय सोपान की ओर संक्रमण का विभाजन वर्ष कौन-सा माना जाता है?
औपनिवेशिक काल में भारत की जनांकिकीय स्थिति का एक संख्यात्मक चित्रण प्रस्तुत करें।
स्वतंत्रता पूर्व भारत की जनसंख्या की व्यावसायिक सरंचना की प्रमुख विशेषताएँ समझाइए।
स्वतंत्रता के समय भारत के समक्ष उपस्थित प्रमुख आर्थिक चुनौतियों को रेखांकित करें।
भारत में प्रथम सरकारी जनगणना किस वर्ष में हुई थी?
स्वतंत्रता के समय भारत के विदेशी व्यापार के परिमाण और दिशा की जानकारी दें।
क्या अंग्रेज़ों ने भारत में कुछ सकारात्मक योगदान भी दिया था? विवेचना करें।
स्वतंत्रता पूर्व भारत की आर्थिक स्थिति एवं अर्थव्यवस्था -
- स्वतंत्रता के पूर्व भारत की अर्थव्यवस्था, जो कि अंग्रेजों के हाथों में रही है, पूर्णतः अंग्रेजों के हितार्थ थी।
- अंग्रेजों ने यद्यपि भारत में आर्थिक विकास की नींव रखी, किन्तु इसका उद्देश्य केवल उनका ही हित था।
- वे कच्चे माल को ले जाते और वहां से उसे उत्पाद में परिवर्तित कर भारत में महंगे दामों पर बेचा करते थे।
- अफ्रीका पार करने से होने वाली समस्या से बचाव हेतु उन्होंने स्वेज नहर का निर्माण कराया था, जिससे लगभग 7000 किमी की दूरी कम हो गई।
- उन्होंने भारत में सड़क, रेलमार्गों और अनेक उद्योगों का अपने हित के लिए विकास किया।
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- "भारत हमारे साम्राज्य की धुरी है। यदि हमारे साम्राज्य का कोई राज्य अलग हो जाता है तो हम जीवित रह सकते हैं, यदि हम भारत को खो देते हैं तो हमारे साम्राज्य का सूर्य अस्त हो जायेगा।" यह कथन विक्टर एलेक्जेंडर ब्रूस का है। वे 1894 में ब्रिटिश इंडिया के वायसराय थे ।
भारत की भौगोलिक स्थिति एवं आर्थिक परिदृश्य -
भौगोलोक दृष्टि से देखने पर ज्ञात होता है कि भारत एशिया महाद्वीप के दक्षिण में पूर्णरूप से स्थित है। इसके दक्षिण में हिन्द महासागर है। गुजरात से होते हुए कन्याकुमारी तथा आगे बढ़ते हुए कोलकाता(पुराना नाम कलकत्ता) तक का महासागरीय क्षेत्र इसे विदेशों से व्यापार करने हेतु अनुकूलता प्रदान करता है। भारत के तटीय स्थलों में 13 प्रमुख बड़े बंदरगाह हैं। इसके अलावा कई छोटे बंदरगाह हैं जिससे विदेशी आयात - निर्यात संभव हो पाता है। स्वतंत्रता के पूर्व से ही इन मार्गों से विदेशी व्यापार होता आया है।
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प्रश्न - स्वतन्त्रता के पूर्व बंगाल के सूती वस्त्र उद्योग के बारे में समझाईए ।
उत्तर - मलमल एक विशेष प्रकार का सूती कपड़ा है। इसका मूल निर्माण क्षेत्र बंगाल, विशेषकर ढाका के आसपास का क्षेत्र रहा है। ढाका वर्तमान में बांग्लादेश की राजधानी है। ढाका के मलमल ने उत्कृष्ट कोटि के सूती वस्त्र के रूप में विश्व भर में बहुत ख्याति अर्जित की थी। यह बहुत ही महीन कपड़ा होता था। विदेशी यात्री इसे शाही मलमल या मलमल ख़ास भी कहते थे। इसका आशय यही था कि वे इस कपडे़ को शाही परिवारों के उपयोग के योग्य मानते थे।
प्रश्न - ब्रिटिश औपनिवेशिक काल के दौरान राष्ट्रीय आय तथा प्रति व्यक्ति आय का आंकलन करने वाले प्रमुख व्यक्तियों / अर्थशास्त्रियों के नाम लिखिए।
उत्तर - ब्रिटिश औपनिवेशिक काल के दौरान राष्ट्रीय आय तथा प्रति व्यक्ति आय का आंकलन करने वाले व्यक्तियों में दादा भाई नौरोजी, विलियम डिग्बी, फिंडले शिराज, डॉ. के.आर.वी.राव तथा आर.सी. देसाई प्रमुख थे। इनमें से डॉ. राव द्वारा लगाए गए अनुमान बहुत ही महत्त्वपूर्ण माने जाते हैं।
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उत्तर - ब्रिटिश औपनिवेशिक काल के दौरान कृषि की गतिहीनता का मुख्य कारण औपनिवेशिक शासन द्वारा लागू की गई भू व्यवस्था प्रणालियाँ थीं । आज के समस्त पूर्वी भारत में, जो उस समय बंगाल प्रेसीडेंसी कहा जाता था, लागू की गई जमींदारी व्यवस्था में तो कृषि कार्यों से होने वाले समस्त लाभ को जमींदार ही हड़प जाते थे, किसानों के पास कुछ नहीं बच पाता था। यही नहीं, अधिकांश जमींदारों तथा सभी औपनिवेशिक शासकों ने कृषि क्षेत्रक की दशा को सुधारने के लिए कुछ नहीं किया। साथ ही, प्रौद्योगिकी के निम्न स्तर, सिंचाई सुविधाओं के अभाव, बाढ़ नियंत्रण प्रणाली का भाव और उर्वरकों का नगण्य प्रयोग भी कृषि उत्पादकता के स्तर को बहुत निम्न रखने के लिए उत्तरदायी था। अंग्रेजों द्वारा लागू की गईं राजस्व शर्तें भारतीय कृषकों के प्रतिकूल थीं ।
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उत्तर - सत्रहवीं शताब्दी में भारत आए फ्रांसीसी यात्री का नाम बर्नीयर था । अपने 2 बार के भ्रमण के दौरान बर्नीयर ने तत्कालीन बंगाल की अर्थव्यवस्था का वर्णन किया है।
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प्रश्न - औपनिवेशिक व्यवस्था के अंतर्गत भारत एक सुदृढ़ औद्योगिक आधार का विकास क्यों नहीं कर पाया ?
// अथवा //
स्वतन्त्रता प्राप्ति के पूर्व भारत में बेरोजगारी का प्रमुख कारण क्या था ?
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प्रश्न - भारत में प्रथम लोहा इस्पात कंपनी टाटा आयरन स्टील कंपनी (TISCO) की स्थापना कब हुई ?
प्रश्न - स्वतन्त्रता पूर्व भारत में कार्यरत कुछ आधुनिक उद्योगों के नाम लिखिए ।
सूती वस्त्र उद्योग,
पटसन उद्योग,
चीनी उद्योग,
सीमेंट उद्योग,
कागज उद्योग,
लोहा और इस्पात उद्योग (TISCO) - स्थापना वर्ष - 1907.
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उत्तर - पूंजीगत उद्योग वे उद्योग होते हैं जो तात्कालिक उपभोग में काम आने वाली वस्तुओं के उत्पादन के लिए मशीनों और कलपुर्ज़ों का निर्माण करते हैं ।
उत्तर - स्वेज नहर लाल सागर और भूमध्य सागर को मिलाने वाला एक कृत्रिम जलमार्ग है, जिसे अंग्रेजों द्वारा व्यापारिक दृष्टि से तैयार किया गया था। इस नहर से अमेरिका और यूरोप से आने वाले जलयानों को दक्षिण एशिया, पूर्वी अफ्रीका तथा प्रशांत महासागर तटवर्ती देशों के लिए एक छोटा और सीधा जलमार्ग सुलभ हो गया है। अब उन्हें अफ्रीका के दक्षिणी छोर की परिक्रमा नहीं करनी पड़ती। स्वेज नहर आज आर्थिक और सामरिक दृष्टि से विश्व का सबसे महत्त्वपूर्ण जलमार्ग है। इसे वर्ष 1869 में खोला गया था।
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प्रश्न - भारत में जनगणना कितने वर्षों के अंतराल पर होती है?
उत्तर - भारत में जनगणना हर 10 वर्षों के अंतराल पर होती है।
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प्रश्न - जनांकिकीय संक्रमण का प्रथम सोपान किस वर्ष तक माना जाता है?
उत्तर - जनांकिकीय संक्रमण का प्रथम सोपान किस वर्ष 1921 तक माना जाता है। द्वितीय सोपान का आरंभ वर्ष 1921 के बाद माना जाता है।
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प्रश्न - औपनिवेशिक काल में भारत की जनांकिकीय स्थिति का एक संख्यात्मक चित्रण प्रस्तुत कीजिए।
उत्तर - औपनिवेशिक काल में भारत की जनांकिकीय स्थिति का संख्यात्मक चित्रण निम्नानुसार किया जा सकता है -
- औपनिवेशिक काल में साक्षरता दर 16 प्रतिशत से कम ही थी।
- इसमें महिला साक्षरता दर 7 प्रतिशत से कम आँकी गई।
- जन स्वास्थ्य सेवाएँ अधिकांश को सुलभ ही नहीं थीं । जहां ये सुविधाएं उपलब्ध भी थीं , वहाँ नितांत ही अपर्याप्त थीं, फलस्वरूप व्यापक जनहानि होना आम बात थी।
- उस समय सकल मृत्यु दर बहुत ऊंची थी ।
- शिशु मृत्यु दर भी 218 प्रति हजार थी ।
- जीवन प्रत्याशा केवल 32 वर्ष थी ।
- औनिवेशिक शासन के दौरान भारत में अत्यधिक गरीबी व्याप्त थी ।
- भारत की जनसंख्या का एक बड़ा भाग घर से भी वंचित था ।
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प्रश्न - 20वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में भारत की राष्ट्रीय आय के बारे में समझाइए ।
उत्तर - 20 वीं शाताब्दी के पूर्वार्द्ध में भारत की राष्ट्रीय आय की वार्षिक संवृद्धि दर 2 प्रतिशत से कम ही रही है तथा प्रति व्यक्ति उत्पाद वृद्धि दर मात्र आधा प्रतिशत ही थी ।
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प्रश्न - स्वतन्त्रता पूर्व भारत के विदेशी व्यापार को समझाइए ।
उत्तर - प्राचीन समय से ही भारत एक महत्वपूर्ण व्यापारिक देश रहा है किन्तु औपनिवेशिक सरकार द्वारा अपनाई गई वस्तु उत्पादन , व्यापार और सीमा शुल्क की प्रतिबंधकारी नीतियों का भारत के विदेशी व्यापार की संरचना , स्वरूप और आकार पर बहुत प्रतिकूल प्रभाव पड़ा । परिणामस्वरूप भारत कच्चे उत्पाद जैसे रेशम , कपास , ऊन , चीनी , नील और पटसन आदि का निर्यातक होकर रह गया । साथ ही यह सूती , ऊनी , रेशमी , वस्त्रों जैसी अंतिम उपभोक्ता वस्तुओं और इंग्लैंड के कारखानों में बानी हल्की मशीनों आदि का आयातक देश भी हो गया । भारत का आधे से अधिक व्यापार केवल इंग्लैंड तक ही सीमित रहा । शेष कुछ व्यापार चीन , श्रीलंका और ईरान से भी होने दिया जाता था ।
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प्रश्न - औद्योगिक क्रान्ति सर्वप्रथम किस देश में हुई ?
उत्तर - औद्योगिक क्रान्ति सर्वप्रथम इंग्लैंड में हुई ।
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प्रश्न - भारत में सर्वप्रथम रेलगाड़ी किस वर्ष चली थी ?
उत्तर - भारत में सर्वप्रथम रेलगाड़ी 16 अप्रैल, 1853 को मुंबई और ठाणे के बीच चलाई गई थी ।
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